बीमा क्षेत्र के निजीकरण के विरोध में एकजुट हुए सरकारी बीमाकर्मी
कर्मचारी कल्याण, लंबित वेतन संशोधन, नियामक सुधार, सभी वर्गों में पर्याप्त संख्या में भर्ती आदि पर सरकार से किया हस्तक्षेप का अनुरोध
चंडीगढ़ । बीमा क्षेत्र में सरकार की महत्वकांक्षी योजना ‘इंश्योरेंस फार आल’ तभी संभव है जब वह सार्वजनिक क्षेत्र की बीमा कंपनियनों को सशक्त बनाने के प्रयास करे न कि उनका निजीकरण कर। यह भाव जनरल इंश्योरेंस इम्पलाइज एसोसिएशन उत्तरी क्षेत्र की वर्किंग कमेटी की मीटिंग के दौरान प्रकट किये। शनिवार को सेक्टर 17 स्थित एक निजी होटल में आयोजित इस अधिवेशन में राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार सहित उत्तरी भारत के लगभग 80 प्रतिनिधियों ने भाग लिया और निजीकरण के प्रति अपना रोष व्यक्त किया। पत्रकारों को संबोधित करते हुए एसोसिएशन के महासचिव त्रिलोक सिंह ने बताया कि 25 नवंबर से शुरु होने वाले संसद के शीतकालीन अधिवेशन के मद्देनजर एसोसिएशन ने पब्लिक सेक्टर इंश्योरेंस कंपनियों के निजीकरण और बीमा क्षेत्र में सौ फीसदी एफडीआई के खिलाफ एक आंदोलनात्मक प्रोग्राम तैयार किया है। उन्होंने बताया कि समय समय पर सरकार उन पर निजीकरण का एजेंडा थोपती रहती हैं जबकि इसकी जगह सार्वजनिक क्षेत्र की चारों कंपनियों – नेशनल इंश्योरेंस, न्यू इंडिया इंश्योरेंस, ओरिएंटल इंश्योरेंस और यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस का विलय कर सक्रिय उपायों के साथ देश में सरकारी बीमा उद्योग को मजबूती दी जाये।
उन्होंने बताया कि उनका क्षेत्र विपरीत परिस्थितियों में भी भारत सरकार को अपने संचालन के माध्यम से लाभ देते रहे। इसके अलावा सरकार की अन्य समाजिक योजनाओं को लाभ आमजन तक पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। बावजूद इसके इस सेक्टर के कर्मचारी इस आंदोलन के केन्द्र में हैं। सरकार उनकी पीड़ा नहीं समझ रही है जिसके चलते वे संघर्षरत हैं। मंहगाई के इस दौर में भी कर्मचारियों के वेतन में कोई वृद्धि नहीं हुई है। 26 माह से उनका वेज रिविजन नहीं हुआ जो कि बहुत दुखद है। उन्होंनें चिंता जताई की उनके उद्योग में तीस प्रतिशत फैमली पेंशन है जो कि बैंकिंग, एलआईसी और अन्य राज्य सरकारों में दी जाती है, उनके बीमा क्षेत्र के मात्र 15 फीसदी है जिसे न्यू पेंशन स्कीम के तहत बढ़ाया जाना चाहिये। इस दौरान एसोसिएशन के प्रतिनिधियों ने सरकार द्वारा मेडीक्लेम के लिये सरकारी रेगूलेटर गठन की मांग भी कि जिससे निजी क्षेत्र के बड़े हस्पताल में मेडिकल भुगतान के गोरखधंधों पर अंकुश लगाया जा सके।