जीवन के ये 26 साल यूं ही हंसते गाते कैसे बीत गए पता ही नहीं चला। मेरा नाम प्रकाश पंचपुरी और मेरी पत्नि का नाम पार्वती। हम दोनों को आज भी वो दिन याद है, जब पहली बार हमने एक दूसरे को मंडप में ही देखा था। हमारे समय में यूं ही विवाह हुआ करते थे। लड़का लड़की आज जैसे शादी से पहले मिलते हैं, वैसे उस वक्त मिलने पर पाबंदी थी। रिश्ता घर वालों ने ही तय किया था, लड़की को भी मेरे घर वालों ने ही देखकर पसंद किया। हमारी शादी 10 फरवरी 1994 को हुई। बारात देवप्रयाग से अंजनीसैंण ढोल,दमउ,मसक बीन के साथ पहुंची। बारात में दोस्त और भाई लोगों ने खूब पटाखे छुड़ाए। ये सब याद करके आज भी बहुत अच्छा लगता है। 26 साल से हमारा प्रेम एक दूसरे के लिए जरा भी कम नहीं हुआ। कुछ साल तो हमें एक दूसरे को समझने में लगा। शुरूआती दौर में हल्कि नोक-झोंक भी हुई, फिर धीरे-धीरे हम अच्छे दोस्त बन गए।
मेरी पत्नि पार्वती जथा नाम तथा गुंण वाली है। उसने मेरे घर संसार को कब अपना कर उसे सम्भालना शुरू किया, मुझे पता ही नहीं चला। घर का चूल्हा चैका से लेकर खेती करने तक उसने हर जिम्मेदारी बखूबी निभाई। उसका मृदुल स्वभाव परिवार में सबको भाता है, इसी स्वभाव से उसने मेरे माता-पिता का दिल जीत लिया। मेरे हर बुरे वक्त में मेरी पत्नि मेरे साथ खड़ी रही और आज भी हालात में साथ है। हाॅ अब थोड़ा नोक-झोंक बढ़ गई है, बेटी की शादी होने के बाद काम का बोझ भी उसी के कंधों पर आ गया है। उम्र का तकाजा होने के बावजूद वह अब भी उसी तेजी के साथ काम करती है, जैसे 26 साल पहले किया करती थी। हम दोनों ने एक दूसरे के साथ बहुत यादगार पल बितायें हैं। शादी के बाद बद्रीनाथ के माणा गाँव में हम लोग घूमने गये बद्रीनाथ के दर्शन के बाद हम वहीं पास की पहाडियों में टहलने निकल गये। होली, दीपावली जैसे पर्व साथ में मनाते आए हैं। घर में हम लोग पांच भाई हैं, पूरा परिवार एक साथ संगठित होकर रहता है। बड़े परिवार की खूबी है कि दुःख का पता नहीं लगता और सुख दोगुना हो जाता है। 26 साल की इस साझेदारी में मैने और मेरी पत्नि ने नजाने कितने उतार चढ़ाव देखे, लेकिन परिवार साथ था तो कभी डर नहीं लगा। हर हालात का सामना बिना डरे डट कर किया। मेरी पत्नि ने हमारे बच्चों को जीवन की सच्ची सीख दी। उन्हें पूजा-पाठ व धर्म-कर्म से जोड़े रखा। उन्हें समाजिक हर बुराई और जिम्मेदारियों की भी जानकारी दी। हमारे तीन बच्चे हैं, लेकिन लगता है कि जैसे मेरा पूरा प्यार मेरी बड़ी बेटी आयुशी के लिए है। वो जितनी नादान है उतनी समझदार भी। अपनी माँ के साथ वह भी घर की पूरी जिम्मेदारी निभाती है। शादी के बाद भी वह अब तक घर की फिक्र करती है। मेरे दोनों बेटे कामयाब होकर अब घर चलाने लगे हैं। मेरी जिम्मेदारियों का बोझ उन्होंने कब अपने कंधों पर उठा लिया मुझे पता ही नहीं चला। हमारे कुलदेवताओं का आशीष और परिवार का प्यार यूंही बना रहे ईश्वर से यही कामना है।
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