मोबाइल फोन: आधुनिक युग की एक दुविधा या सुविधा ?
समीक्षा उपाध्याय (ऋषिकेश)
आज के समय में, मोबाइल फोन हमारे जीवन का एक अभिन्न हिस्सा बन गया है। बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक, सभी इसका उपयोग कर रहे हैं। इस फोन ने सभी का काम आसान बना दिया है, चाहे वह पढ़ाई का क्षेत्र हो, विज्ञान का क्षेत्र हो, प्रशिक्षण हो या ऑफिस हो। आज हम जहां कहीं भी हैं, इसके पीछे इसी का हाथ है। कोरोना काल में इसका उपयोग अत्यधिक बढ़ गया है। हालांकि, हर सिक्के के दो पहलू होते हैं, और मोबाइल फोन के साथ भी यही सच है। इसके कुछ फायदे हैं, तो इसके कुछ दुष्प्रभाव भी हैं।मेरा सवाल यह है कि क्या हमें मोबाइल फोन का उपयोग हमेशा करना चाहिए? आजकल 3 साल के बच्चों के पास भी फोन देखे जा रहे हैं। क्या यह सही है? बच्चों का मोबाइल के प्रति लगाव दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। पहले, जब फोन नहीं हुआ करता था, बच्चे आंगन में, खेतों में, या पार्कों में खेला करते थे, जिससे उनका शारीरिक विकास भी होता था। अब बच्चे कहीं से भी आएं, उन्हें फोन चाहिए। चाहे भोजन के समय हो या खेल के समय, हर समय उन्हें इसका उपयोग करना है। लेकिन वे यह नहीं जानते कि इससे उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव पड़ रहा है। आजकल के बच्चे परिश्रम करने से डरते हैं, क्योंकि हर चीज में उन्हें शॉर्टकट चाहिए ताकि जल्दी काम हो जाए। इस शॉर्टकट को अपनाने के चक्कर में वे भूल जाते हैं कि वे गलत राह पर चल रहे हैं। चाहे स्कूल का कार्य हो या पढ़ाई, वे बिना फोन के नहीं रह पा रहे हैं। धीरे-धीरे पुस्तकालय के प्रति रुचि भी समाप्त होती जा रही है। यह एक गंभीर विषय बनता जा रहा है। हमें इसे रोकने के लिए अभियान चलाना चाहिए और माता-पिता को बताना चाहिए कि कैसे वे अपने बच्चों को कम से कम फोन का उपयोग करने के लिए प्रेरित करें। याद रखिए, आप मोबाइल को अपना गुलाम बनाना चाहते हैं या मोबाइल आपको गुलाम बनाए ?