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नवरात्रि विशेष: इस नवरात्र इस तरह करें माँ भगवती का पूजन, जानिए पूजा अनुष्ठान की विधि।


अमित पंचपुरी/उत्तराखंड लाइव: हिंदू  धर्म में नवरात्रि का विशेष महत्व माना गया है।  हिंदू पंचांग के अनुसार, नवरात्रि चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शुरू होते हैं और अगले नौ दिनों तक चलते हैं। इन नौ दिनों में देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा होती है।

इस बार चैत्र नवरात्रि का आरंभ 2 अप्रैल से हो रहा है और 11 अप्रैल को समाप्त होंगे। कहते हैं नवरात्रि में जो व्यक्ति पूरे विधि विधान से नौ दिनों तक मां दुर्गा की उपासना करता है देवी उससे प्रसन्न होती हैं और अपना कृपा बनाए रखती हैं। आइए जाानते हैं चैत्र नवरात्रि कब है और किस दिन कौनसी देवी की उपासना की जाती है।

हमारे समाज मे पुरुषों की तुलना में स्त्रियां अधिक उपवास रखती है, चाहे वो नवग्रह से सम्बंधित हो या फिर किसी देव या काम्य कर्म हेतु।

स्त्रियों के हेतु शास्त्र सम्मत उपवास के स्वरूप तथा उनके नियम-

#उपवास_निर्णय
नास्ति स्त्रीणां पृथ्ग्यो न व्रतं नात्युपोषणं ।।
भार्या पत्युर्मतनैव व्रतादीनां चरेत्सदा।।

स्त्रियों को पृथक यज्ञविधि, उपवास व्रत नही है,
पति की आज्ञा के बाद ही स्त्री सदा व्रतादि का पालन करे।

भर्तनुज्ञैव स्त्रीणां व्रतं

स्त्रियां पति के द्वारा किये गए कर्मो के अनुरूप ही यथेष्ठ लोको को गमन करती है। स्वामी के द्वारा किये गए शुभाशुभ कर्म के द्वारा ही पत्नी की गति होती है।

#व्रतानुपालन-
तत्जप्यजनं ध्यानं तत्कथाश्रवणादिकम
तदर्चनम च तदनामकीर्तनम श्रवणादयः

जिन देवता के लिए व्रत धारण किया हो उन देवता का मन्त्र जप, ध्यान, कथा श्रवण, उनका पूजन, कीर्तन यह सब उपवास करने वाले के लिए कहे गए है।

#व्रत_तथा_पारण_करने_में_असमर्थ_होने_पर

#उपवासासमर्थश्चदकं_विप्रं_तु_भोजयेत

यदि स्त्री उपवास करने में शारीरिक रूप से असमर्थ हो तो एक ब्राह्मण को भोजन अथवा द्रव्य देकर अन्न ग्रहण कर सकती है।

#यदि_धन_द्रव्य_की_कमी_से_पारण_अथवा_दान_में__कमी_हो _तो –

विप्रवाक्यम स्मृतः शुद्धम व्रतस्य परिपुर्तये

शास्त्रोक्त विधि से उपवास या दान न किये जाने पर भी ब्राह्मण के वचन अथवा सतुंष्टि से ही व्रत की पूर्ति हो जाती है।

#व्रतभंग
अश्रुप्रपातो रोषश्च कलहस्य कृतिस्तथा उपवासा सद्यो भ्रंशयति
अश्रुपात करने, क्रोध होने , क्लेश करने से, स्त्रियों के व्रत तत्काल भंग हो जाते है।

#सूतक_निर्णय

सुतके मृतके चैव न त्याजम व्रतं

किसी भी सुतक में काम्य और लंबी अवधि के संकल्पित व्रत नही त्यागने चाहिए।

गर्भिणी सूतिकादिश्च कुमारी च रोगिणी
यदा अशुद्धा तदान्येन कारयेत्प्रयता स्वयम।

गर्भिणी सूतिका कुमारी रोगिणी अशुद्ध अवस्था मे दूसरे से व्रत करवाएं।

#सुतकेमृतके_चैव_व्रतं_तत्रैव_न_दुष्यति
सूतक काल मे नए व्रतों का आरम्भ नही होता लेकिन पूर्व काल से संकल्पित व्रत सूतक में दूषित नही होते।

#काम्योपवासे_प्रक्रान्ते_तवन्तरा_मृतसुतके
अन्तरा_तु_रजोयोगे_पूजामन्येन_कार्येत।।

यदि काम्य उपवास के आरंभ या मध्य में ही सुतक हो जाये तो दान, पूजन के बिना ही व्रत पूर्ण किया जाता है।

यदि व्रत में रजोधर्म हो जाए तो दूसरे से व्रत,पूजन करवा देवे। पुत्र, बहन, पति, ब्राह्मण, पिता, माता, और भाई
उस स्त्री के निमित्त व्रत धारण कर सकते है।

एषांमभाव ऐवान्यं ब्राह्मण वा नियोजयेत्

इन सभी के अभाव में ब्राह्मण को नियोजित करना चाहिए।(पति, भाई, पत्नी, पुत्र, पिता, माता, पुरोधा- पुरोहित ) धर्मकार्य में यह स्व के प्रतिनिधि होते है। इनका किया हुआ, स्वयं के ही किये गए के तुल्य होता है, इसमें कोई संशय नही है।

नैवेद्यं तुलसीमिश्रम हत्यां कोटिविनाशनीम
जो तुलसिमिश्रित नैवेद्य को प्राप्त करता है उसकी अनेको कोटिहत्या दूर हो जाती हैं।

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