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पर्यटन:उत्तराखण्ड घूमने आए तो इस मंदिर में जरूर जाएं।


यहॉ के पूजारी को पूजन से पूर्व आंखों में बांधनी होती है पट्टी।
मंदिर में आज भी मौजूद है देवी के शरीर का भाग।
लाखों वर्ष पुराना माता का श्रीयंत्र की होती है पूजा।

ब्यूरो/उत्तराखण्ड लाइव: उत्तराखण्ड घूमने आएं तो आपको गढ़वाल में मौजूद इस दिव्य और सिद्धपीठ मंदिर अवश्य घूमने आना चाहिए। यह मंदिर है चंन्द्रबदनी सिद्धपीठ। जहॉ आज भी लाखों वर्ष पुराना स्वयं देवी का श्रीयंत्र न सिर्फ मौजूद है बल्कि इस यंत्र की पूजा भी होती है।

टिहरी गढ़वाल जिले में देवप्रयाग से 22 किमी की दूरी पर मौजूद है चंद्रबदनी मंदिर उत्तराखंड राज्य के प्रसिद्ध सिद्ध मंदिरों में से एक है। मंदिर समुद्र तल से 2277 मीटर ऊपर चंद्रबदनी नामक पर्वत पर स्थित है। इस मंदिर परिसर में हिमालय की चोटियों जैसे सुरकंडा, केदारनाथ और बद्रीनाथ के साथ-साथ गढ़वाल की प्राकृतिक हरी—भरी पहाड़ियों के दर्शन होते हैं। चंद्रबदनी मंदिर देवी शक्ति को समर्पित है, जो कि भारत में स्थापित 52 शक्तिपीठो में से एक है। इस मंदिर में रोजाना श्री यंत्र की पूजा की जाती है जिसे एक सपाट पत्थर की सतह पर उकेरा गया है जो एक कछुए की पीठ के आकार का है।

मंदिर में बर्ष में एक बार रहस्यमय तरीके से पूजा भी जाती है जिसका काफी महत्व माना जाता है। अप्रैल के महीने में, मंदिर में एक मेला लगता है जो बड़ी संख्या में भक्तों को आकर्षित करता है।

हिंदू कथाओं के अनुसार चंद्रबदनी मंदिर की कहानी उस समय की है, जब माता सती के पिता पिता राजा दक्ष ने विशाल यज्ञ किया। इस अवसर पर शिव को अपमानित करने के लिए उन्हें यज्ञ में शामिल होने के लिए निमंत्रण नहीं भेजा गया। जिस पर देवी सती अपने पति शिव का अपमान नहीं सहन कर की और यज्ञ में कूद कर सती हो जाती हैं। जिसके बाद में, क्रोधित शिव ने सती के जले हुए शरीर को उठाया और उनके निवास स्थान की ओर चल पड़े। जब शिव कई वर्षों तक माता के शरीर को लिए संताप करते रह गए ऐसे में जगत की भलाई के लिए शिव का ध्यान सती के शरीर से हटाने के लिए विष्णु जी ने आखिरकार अपने चक्र से देवी सती के जले हुए शरीर को नष्ट कर दिया था। जिससे देवी सती के शरीर के टुकड़े धरती पर अलग अलग स्थानों पर जा कर गिरे। धरती पर जिन स्थानों पर देवी सती के शरीर के अंग गिरे उन स्थानों पर शक्ति पीठों का निर्माण हुआ। जिस स्थान पर मॉ सती के शरीर के धड़ वाला हिस्सा गिरी वही स्थान कालांतर में चंद्रबदनी मंदिर के नाम से जाना गया।

चंद्रबदनी मंदिर उत्तराखंड के सबसे पवित्र मंदिरों में से एक है जिससे एक विशिष्ट पौरांणिक कथा और कई मान्यतायें जुडी हुई है। कहा जाता है की जिस पहाड़ी पर ये मंदिर स्थापित है उसे पहले चंद्रकुट पर्वत के नाम से जाना जाता था लेकिन देवी सती के बदन (धड) गिरने के बाद यहाँ चंद्रबदनी मंदिर की स्थापना की गयी जिसके बाद इसे भी चंद्रबदनी पर्वत के नाम से जाना जाने लगा। स्थानीय लोगों और श्रधालुओं का यह भी मानना है की देवी से जो भी सच्चे मन और श्रद्धा से माँगा जाता है देवी उनको जरूर पूरा करती है। आज भी इस मंदिर परिसर में सदियों पुरानी मूर्तियों के साथ विभिन्न धातुओं से बने त्रिशूल देखे जा सकते हैं।

चंद्रबदनी मंदिर भारत के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है जो साल भर किये जाने वाले वाले अपने उत्सवों, मेलों और पूजा अनुष्ठानों के लिए जाना जाता है जिसमे देश भर से श्रद्धालु और पर्यटक शामिल होते है। चंद्रबदनी मंदिर में आरती और पारंपरिक संगीत नियमित रूप से ढोल, दमउ और भंकोरा की संगत के साथ किया जाता है।

मंदिर में आज भी एक बड़ा रहस्यमयी परंपरा है। जिसमें मॉ सती के पूजन से पूर्व उनको अन्य देवी—देवताओं की ही भांति स्नान कराया जाता है लेकिन विशेष बात यह है कि इस मंदिर में देवी स्नान से पूर्व मंदिर के पुजारी को अपनी आंखों में पट्टी बांधनी पड़ती है। जिससे माता के शरीर के धड़ वाले हिस्से की गरिमा और पवित्रता बनी रहे।
चैत्र नवरात्रि, अश्विन नवरात्रि, दशहरा, दीपावली जैसे त्यौहारों को बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। मंदिर में हर साल अप्रैल के महीने में एक मेले का आयोजन भी किया जाता है जिसमे हजारों श्रद्धालु और पर्यटक मेले का हिस्सा बनने के लिए आते हैं। वैसे तो चंद्रबदनी मंदिर पूरे साल खुला रहता है आप साल के किसी भी समय आ सकते है। जैसा कि मंदिर एक पहाड़ की चोटी पर स्थित है, इसीलिए मानसून के मौसम में यहाँ आने से बचना चाहिए। यदि आप विशेषतौर पर मंदिर में होने वाले समारोहों और मेलो में भाग लेना चाहते है तो आप नवरात्री, और अप्रैल में आयोजित होने वाले मेले के दौरान यहाँ आ सकते है।

उत्तराखण्ड में कहॉ मौजूद है यह मंदिर:— चंद्रबदनी मंदिर टिहरी गढ़वाल जिले में स्थित है और देवप्रयाग से 33 किमी दूर है, जो उत्तराखंड के सभी प्रमुख शहरों, दिल्ली और अन्य उत्तर भारतीय शहरों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। चन्द्रबदनी मंदिर तक पहुँचने के लिए रोडवेज सबसे अच्छा तरीका है क्योंकि सड़कें अच्छी तरह से जुड़ी हुई हैं और परिवहन के काफी साधन उपलब्ध है। लेकिन यदि आप फ्लाइट ता ट्रेन से यात्रा करके चंद्रबदनी मंदिर की यात्रा पर जाने का मन बना चुके है तो आइये नीचे जानते है की हम फ्लाइट, ट्रेन और सड़क मार्ग से चंद्रबदनी

कैसे पहुंचे इस मंदिर तक:

हवाई मार्ग:— यदि आप चंद्रबदनी मंदिर जाने के लिए हवाई मार्ग का चुनाव करते तो हम आपको बता दें कि देवप्रयाग का सबसे नजदीकी हवाई जॉली ग्रांट हवाई अड्डा है, जो चंद्रबदनी मंदिर से लगभग 122 कि.मी. की दूरी पर हैं।

रेल मार्ग:— चंद्रबदनी मंदिर देवप्रयाग के लिए कोई सीधी रेल कनेक्टविटी भी नही है मंदिर का सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश और हरिद्वार में है जो यहाँ से लगभग 110 और 130 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। आप इन दोनों स्टेशन में से किसी के लिए भी ट्रेन ले सकते है और स्टेशन पर उतरने के बाद आप बस या एक टेक्सी बुक करके चंद्रबदनी मंदिर आ सकते है।

सड़क मार्ग:— चद्रबदनी मंदिर का निकटतम बस स्टैंड देवप्रयाग में है जो यहाँ से 33 किमी की दूरी पर है। आईएसबीटी कश्मीरी गेट, दिल्ली से देवप्रयाग के लिए बसें उपलब्ध हैं। देवप्रयाग पहुंचने के बाद आप टेक्सी या स्थानीय परिवहनो की मदद से चद्रबदनी मंदिर जा सकते है। बस के अलावा आप आसपास के शहरों से अपनी निजी कार से भी चद्रबदनी मंदिर आ सकते है।

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