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प्रशिक्षित गाइडों ने थामी उत्तराखण्ड पर्यटन की डोर।


प्रतिभागियों को गढ़वाल विश्वविद्यालय ने विभिन्न जिलों में दिया प्रशिक्षण।
युवाओं के रोजगार हेतु पर्यटन विभाग उत्तराखण्ड ने की पहल।

आशीष लखेड़ा/ उत्तराखण लाइव: यदि आप उत्तराखण्ड घूमने आ रहे हैं और आपको यहॉ की संस्कृति और विशेषता को जानना है तो आपको उत्तराखण्ड के इतिहास और उससे जुड़े मौजूदा स्थलों तक जाना होगा। निश्चित तौर पर इसके लिए आपको जरूरत होगी एक ऐसे गाइड की जो आपको उत्तराखण्ड के गांव में प्रकृतिक के बीच मौजूद अनछुए स्थानों का भ्रमण करा सके। पर्यटन विभाग उत्तरखण्ड द्वारा गढ़वाल विश्वविद्यालय के सहयोग से विभिन्न जिलों में ऐसे गाइड तैयार किए जा रहे हैं। प्रथम चरण में टिहरी, पौड़ी व दूहरादून जिले में प्रशिक्षण प्राप्त कर यह गाइड अब पर्यटकों को उत्तराखण्ड दर्शन कराने के लिए तैयार हैं।

आपको बता दें कि टिहरी, पौड़ी व देहरादून जिले में हुए डेस्टिनेशन टूरिस्ट गाइड कोर्स अंर्तगत 30—30 प्रतिभागियों को सैद्धांतिक और प्रयोगात्मक प्रशिक्षण दिया जा चुका है। अब यह गाइड पूरी तरह से पर्यटकों को उत्तराखण्ड की सैर कराने के लिए तैयार हैं। इन प्रतिभागियों को गढ़वाल विश्वविद्यालय द्वारा तैयार पाठ्यक्रम के आधार पर अनुभवि एवं विषय विशेषज्ञों द्वारा उत्तराखण्ड की भौगोलिक, राजनीतिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, लोक गीत, लोक वाद्य, रहन—सहन, खान—पान, बोली—भाषा, मेले, औषधीय पादाप, गंगा, लोक पर्व, लोक परम्परा, मान्यता, लोक कहानियां और उनसे जुड़े तथ्य और यहॉ की महान विभूतियों के बारे में जानकारी दी गई।

कम्यूनिकेशन स्किल/आचार—व्यवहार: एक सफल गाइड अपने आचार—व्यवहार एवं कम्यूनिकेशन के लिए जाना जाता है। इसलिए उसे सटीक भाषा—शैली एवं हाव—भाव का ज्ञान होना जरूरी है। इसी दृष्टिकोण से प्रशिक्षण ले रहे गाइडों को विषय विशेषज्ञों द्वारा इसका प्रयोगात्मक प्रशिक्षण भी दिया गया।

लोक गीत एवं लोक कथाएं: उत्तराखण्ड के परिपेक्ष में लोक कथाओं और लोक गीतों का बड़ा महत्व है। जिसे जानकर पर्यटक रोमांच का अहसास करते हैं। इसीलिए सर्वप्रथम गाइडों को इसकी जानकारी होना बेहद जरूरी है। इस संदर्भ में गढ़वाल विश्वविद्यालय के प्राध्यापकों ने प्रतिभागियों को न सिर्फ लोक गीतों की प्रस्तुति दी बल्कि उन्हें उन गीतों का मतलब भी बताया। जबकि उत्तराखण्ड में बहुप्रचलित जीतू बगड्वाल जैसी लोक कथाओं के बारे में भी जानकारी दी।

लोक कला/वाद्य एवं पहनावा:प्रतिभागियों को विशेष तौर पर उत्तराखण्ड के वाद्य यत्रों और उनसे जुड़े प्रख्यात लोक कलाकारों के बारे में जानकारी दी गई। जिससे वे पहले स्वयं यहॉ की कला की विशेषता को समझे और फिर पर्यटकों को इसकी जानकारी दे। इसके अलावा उत्तराखण्ड के विभिन्न जिलों में किसी न किसी रूप में रहन—सहन और पहनावे में भिन्नता देखी जाती है। उनके पहनावे के पीछे के तथ्य एवं कहानियों को भी विशेषज्ञों द्वारा उन्हें बतलाया गया।


ऐतिहासिक स्थल/ धरोहर: उत्तराखण्ड का अपना एक महान राजशाही और आंदोलनों को अविस्मरणीय इतिहास रहा है। जिसके चिह्न आज भी उत्तराखण्ड में बड़े—बड़े किलों और गढ़ों के रूप में व्याप्त हैं। इन गढ़ों के पीछे की महान एवं रोचक कहानियों को प्रतिभागियों को बताया गया ताकि वे उत्तराखण्ड आने वाले पर्यटकों को इन स्थ्लों पर ले जाकर यहॉ के राजा और उसके सौर्य गाथाओं को उन्हें बता सके।

गढ़ववाल विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो0 अन्नपूर्णा नौटियाल का कहना है कि : विश्वविद्यालय इस तरह के प्रशिक्षण कार्यक्रमों में पर्यटन विभाग का पूर्णत: सहयोग करेगा। प्रशिक्षितों को सैद्धांतिक एवं प्रयोगात्मक अध्ययन के लिए प्रेरित करेगा।


उत्तराखण्ड पर्यटन विकास परिषद की अपर निदेशक पूनम चंद ने बताया कि :  गढ़वाल विश्वविद्यालय के माध्यम से जनपद टिहरी,पौड़ी एवं देहरादून में यह कोर्स संपन्न करा लिए गए हैं। जबकि बागेश्वर जनपद अंर्तगत कौसानी में यह कोर्स इनटेक द्वारा संचालित किया जा रहा है। भविष्य में भी पर्यटन से सबंधित रोजगार आधारित कोर्स संचालित किए जाते रहेंगे।

 

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