उत्तराखंड में संघ की आधारशिला के नायक गजेंद्र दत्त नैथानी
उत्तराखंड लाइव: पहाड़ों में जब केवल बद्री केदार की यात्रा के कारण ही उत्तराखंड को जाना जाता था।तब इस मिथक को तोड़ते हुए 1942 में नानाजी देशमुख ने गढ़वाल के प्रतिष्ठित परिवार के मुखिया स्वर्गीय सदानंद नैथानी की पत्नी गणेशी देवी से संपर्क कर उनसे कहा कि आपके पांच पुत्र है, इनमें में से एक पुत्र गजेंद्र को मात्र भूमि की सेवा में देश सेवा के लिए संघ को दे दे। गणेशी देवी ने भी नानाजी के प्रस्ताव पर हामी भर ली।और इस तरह राष्ट्रवादी विचारों के युवक का संघ में प्रवेश हुआ।तब गजेंद्र नैथानी जी ने ब्रह्मचर्य रहने का संकल्प लेकर अपना संपूर्ण जीवन देश सेवा के लिए समर्पित कर दिया।
गजेंद्र दत्त जी का जन्म 1922में पिता सदानंद जी घर पर गांव थानों देहरादून में हुआ था।बड़े भाई पुष्कर नारायण,आनंद नारायण, बृज मोहन,गजेंद्र दत्त ओर तेज नारायण,सहित कुल पांच भाई थे।
पिता सदानंद उच्च शिक्षित और पौड़ी के मूल गांव नैथाना से थे,जिनके पूर्वज ब्रिटिश युग में थानों में आकर बस गए थे। गजेंद्र दत्त जी की माता दीवान भवानी दत्त जी की भतीजी थी।वह भी बहुत प्रखर ओर एक संभ्रांत,उच्च परिवार से आती थी। गजेंद्र दत्त जी की स्नातक तक की शिक्षा देहरादून में हुई,यहां छात्र जीवन में भाजपा के बड़े नेता जगदीश चंद्र माथुर उनके सीनियर दोस्तो में एक थे। इनकी संगठनात्मक शक्ति और विचारों की प्रखरता के कारण 1943 से1947 तक इन्होंने देहरादून में एक मुख्य शिक्षक की भूमिका निभाई।
गजेंद्र दत्त जी को मैने 1973 1974 में पहली बार श्रीनगर में देखा था।तब में कक्षा 08 विद्यार्थी था।अवसर था देवरस जी की बद्रीनाथ यात्रा।संघ कार्यालय में तब अपने बड़े भी प्रमोद धस्माना संस्थापक अध्यक्ष विद्यार्थी परिषद के साथ निकट से दोनों ऋषि पुरूषों को देखने का अवसर मिला था। गढ़वाल संभाग में उनके मार्गदर्शन में संघ की शाखाएं गढ़वाल के दूरस्थ अंचलों में भी लगने लगी थी। इस काम में उनके साथ क्षेत्रपाल उपाध्याय,एटा वासी,पौड़ी के लूंगी सिंह जी,हमारे अग्रज राजेश्वर उनियाल, गोपाल रावत, कृष्णानंद मैठाणी,नरेंद्र उनियाल,ओर मेरे बड़े भाई प्रमोद होते थे।
आपातकाल लगते ही ये अधिकांश लोग गिरफ्तार कर लिए गए थे,गजेंद्र दत्त जी भी इनके साथ 19 माह तक जेल में रहे थे।इससे पर नैथानी जी,एक प्रचारक के रूप में धामपुर,नजीबाबाद, शाहजहांपुर, मुजाफर नगर,ओर नैनीताल में भी संघ के कामों के लिए जमीन तैयार कर चुके थे। इसके बाद 1967 – 1970 के बीच उन्होंने भारतीय जनसंघ के संगठन को यूपी में खड़ा में बड़ी भूमिका निभाई थी।ओर अंत तक वह उत्तर प्रदेश में पार्टी संगठन को खड़ा करने में महत्वपूर्ण योगदान देते रहे। एक निष्काम कर्मयोगी तो तरह काम करते हुवे उन्होंने कभी विधानसभा या राज्यसभा में जाने में इच्छा नहीं दिखाई।
गजेन्द्रदत जी को 1989 में जब प्रदेश बीजेपी का लखनऊ में कार्यालय प्रभारी बनाया गया तब उन्हें नजदीक से देखने का अवसर मिला। उत्तराखंड से आने वाले हर कार्यकर्ता ओर उनके द्वारा क्षेत्र विकाश के प्रस्तावों पर संबंधित मंत्रियों को कार्यालय में बुलाकर शासनादेश करवाकर उनके रहने खाने तक की व्यवस्था स्वयं करते थे।
अनुभवी शांत गंभीर और चिंतन की मुद्रा में दिखाई देने वाले गजेंद्रदत जी को प्रदेश में तब कार्यकर्ता ओर मंत्री तक उन्हें आदर से ताऊ जी कह कर संबोधित करते थे। मैने उस द्वारों देखा था कि जब प्रदेश के मुख्यमंत्री राम प्रकाश गुप्त जी स्वयं उनसे मिलने पार्टी कार्यालय में आते थे। पाठक अनुमान लगा सकते है कि तब पार्टी संगठन का महत्व कितना अधिक था।
भाजपा के सत्ता में आने के बाद भी वे लखनऊ में रिक्शे से विधान सभा आदि स्थानों पर जाते थे। सादगी और सरलता का सम्मान उनके विरोधी तक करते थे।उनके पास पहाड़ के हर कोने से आने वाला फरियादी उनका अतिथि होता था,उसकी जाति या पार्टी उन्होंने कभी नहीं पूछी,जैसा कि आज बीजेपी में हो रहा है। पुरस्कार भी पार्टी नेताओं की सिफारिश पर दिए जा रहे है।
संघ और पार्टी संगठन की अनवरत सेवा करने के बाद 2006 में मधुमेह बीमारी ने उन्हें गंभीर स्थिति में पहुंचा दिया था। एक पांव लकवाग्रस्त हो गया था। योग और इलाज के बाद भी बहुत सुधार नहीं हुआ।ओर अंत 87 वर्ष की आयु में 27 जून 2008 को लखनऊ में में उनका निधन हो गया।
आज जब भाजपा कई वर्षों से सत्ता में है,संघ ओर पुराने जिन कार्यकर्ताओं के संघर्ष ओर बलिदानों से नेतागण सत्ता के नशे में चूर हैं,उन्हें पुरानी संघ ओर संगठन के लोगों की सुध लेनी चाहिए कम से कम उन परिवारों की सुध तो ले।ऋषि पुरुष गजेंद्रदत जी को उनकी पुण्य स्मृति माह पर हार्दिक नमन के साथ श्रद्धांजलि।
– डॉ योगेश धस्माना