logo
Latest

मोह ही समस्त मानसिक व्याधियों का मूल है व सत्संग ही इसका उपचार है : प्रेममूर्ति पूज्य संतोष जी महाराज (अयोध्या धाम वाले) ने


चण्डीगढ़ : मोह ऐसा मानसरोग है जो अधिकांशतः सुशिक्षित और सफल लोगों में पाया जाता है जिसके कारण ऐसे लोग गुणी होते हुए भी अपने समान किसी को न मानकर पूरे समय यही चिंतन करते रहते है कि मैं किसी दूसरे से कैसे और कितना श्रेष्ठ हूं। ये बात कथावाचक प्रेममूर्ति पूज्य संतोष जी महाराज (अयोध्या धाम वाले) ने से. 29 स्थित श्री साईं धाम में नवरात्री एवं रामनवमी के अवसर पर हो रही संगीतमय श्री रामकथा सुनाते हए कही।


उन्होंने बताया कि भगवान के परम भक्त नारद जी, शिव की अर्धांगिनी सती जी तथा भगवान विष्णु की सेवा में रहने वाले गरुड़ जी भी भगवान की लीला के वशीभूत होकर मोह पाश में बंध गए। भगवान विष्णु के द्वारपालों जय और विजय, चार संतों सनक, सनंदन, सनातन, सनत्कुमार को ईश्वर के दर्शन में बाधा डालने के कारण उन्हें भी शाप मिला और वे भी अगले जन्म में रावण और कुंभकर्ण बने। भगवान से प्रदत्त कृपा और सुंदरता, बुद्धिमत्ता को अपनी विशेषता मानकर लोगों से उसकी स्वीकृति की इच्छा ही व्यक्ति को मोहग्रस्त कर देती है।
उन्होंने आगे कहा कि मोह ही समस्त मानसिक व्याधियों का मूल है व सत्संग ही इसका उपचार है। सांसारिक इच्छाएं ही तो बंधन का कारण होती हैं। मोह से मुक्ति के लिए सर्वप्रथम साधक के अंदर स्वत: इस इच्छा का जागरण आवश्यक है कि वह मुक्ति चाहता है। यह संभव तब होता है, जब साधक के अंत:करण में विषयों की इच्छा न रहे और सुमति की क्षुधा का अनुभव हो।

TAGS: No tags found

Video Ad


Top