देश के चर्चित किंतु पहाड़ की उपेक्षित हस्ती प्रो. सतीशचंद्र काला
देहरादून ( डा. योगेश धस्माना) : देश के जाने माने पुरातात्विक विज्ञानी,इतिहासकार,कला शिल्पी प्रो सतीशचंद्र काला का जन्म 1916 में ग्राम सुमाड़ी जनपद पौड़ी गढ़वाल में पिता डॉ भोलादत्त काला के घर पर हुआ था।
उत्तराखंड के सर्वाधिक शिक्षित और जागृत गांव सुमाड़ी के मूल निवासी सतीश चंद्र के पिता गढ़वाल के प्रथम चिकित्सक सिविल सर्जन भी थे।प्रारंभिक शिक्षा श्रीनगर गढ़वाल में करने के बाद उन्होंने बनारस हिंदू विश्व विद्यालय से पुरातत्व में पीजी परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद कलकत्ता विश्वविद्यालय से डी फिल. की डिग्री हासिल की।इस योग्यता को हासिल करने वाले तब ओर आज तक भी पहले उत्तराखंडी थे।
पद्मश्री सतीशचंद्र काला को उत्तरप्रदेश सरकार ने1956 में संग्रहालयों के अध्ययन ओर उनके विस्तार के लिए छात्रवृत्ति भी प्रदान की थी।1969 में भारत सरकार ने जापान और अमेरिका के म्यूजियमों के अध्ययन के लिए उन्हें संयुक्त राज्य अमेरिका की प्रतिष्ठित फैलोशिप देकर भी सम्मानित किया था। स्वदेश लौट कर प्रो काला को मूर्तिकलाओं के सर्वेक्षण के लिए 1973, में जवाहरलाल नेहरू फैलोशिप प्रदान की गई थी।इसके बाद 1983 में उन्हें मूर्तिकला में पक्षियों का अध्ययन के लिए भारतीय इतिहास ओर अनुसंधान परिषद की सीनियर फैलोशिप भारत सरकार ने दी थी।
डॉ सतीशचंद्र कला संस्कृति से संबंधित अनेक राष्ट्रीय ओर राज्य स्तरीय सलाहकार समितियों के सदस्य रहे थे। इतना ही नहीं डॉ सतीश चंद्र ब्रिटेन और आयरलैंड की प्रतिष्ठित रॉयल सोसायटी के फैलो रह कर उन्होंने विदेशी धरती पर भारत की एक विशिष्ट पहचान बनाई थी।
प्रो सतीश चंद्र काला 1943 से 1957 तक इलाहाबाद म्यूजियम के संस्थापक और इसके क्यूरेटर रहे।1958 से 1978 तक इसके प्रथम निदेशक भी रहे।एक उच्च शिक्षाविद् के रूप में उन्होंने अनेक पुस्तकों की रचना की।इनमें प्रमुख रूप से टेरेकोटा फाइग्रेंस ऑफ कौशाम्बी,भारतीय मूर्ति शिल्प,इंडियन मिनिएचर्श इन द इलाहाबाद म्यूजियम,ओर भरहुत वेदिका,उल्लेखनीय रही हैं। आपका टेरेकोटा पर किया गया शोध की चर्चा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खूब हुई।
एक महान कला शिल्पी डॉ सतीश चंद्र प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के भी बहुत निकट रहे थे। आनंद भवन की कला दीर्घाओं को भी उन्हीं के निर्देशन में सजाया गया था। देश के सभी म्यूजियमों को विश्व स्तरीय बनाने में उनका योगदान अतुलनीय था,जिसकी मिशाल ढूंढे नहीं मिलती।
इसी योगदान के चलते उन्हें 16 मार्च 1985 को भारत सरकार ने पद्मश्री पुरस्कार से उन्हें सम्मानित किया।हैरानी की बात यह हे कि इस अंतर्राष्ट्रीय हस्ती को गढ़वाल विश्वविद्यालय ने कभी सम्मान नहीं दिया।
पद्मश्री सतीशचंद्र काला प्रतिवर्ष गर्मियों में पौड़ी घर पर आते रहते थे।उन्होंने ,1958 में जिलाधिकारी ओर शिक्षा अधिकारियों से नगर में एक संगीत विद्यालय खोलने का भी प्रस्ताव किया था।अंतर्मुखी स्वभाव के चलते आज की पीढ़ी उन्हें भूल चुकी हे, सरकार भी।
डॉ सतीश चंद्र जी के परिवार में उनके पुत्र डॉ अविनाश काला पुत्री जयंतिका काला,मालविका काला ओर छोटे पुत्र संजय हैं। भोला दत्त काला जी के दूसरे पुत्र ,गिरीश चंद्र काला,उमेश चंद्र,अवकाश प्राप्त अपर जिलाधिकारी,प्रफुल्लचंद्र,पुत्री दिनेश नंदिनी,दुर्गेश नंदनी,ओर विधान चंद्र काला जी का क्रम आता है।
क्या हमारे गढ़वाल कुमाऊं के विश्व विद्यालय पहाड़ की इन अंतर्राष्ट्रीय हस्तियों पर चियर स्थापित कर उच्च स्तरीय शोध के लिए छात्रवृत्ति देकर विश्व विद्यालय के स्तर को ऊंचा उठाने की दिशा में उल्लेखनीय काम कर पाएगी
इस विवरण के लिए अनिल काला ओर 2011 में सुमाड़ी से प्रकाशित स्मारिका के सहयोग के लिए आभार