logo
Latest

बिना साधना और अनुशासन के संगीत सीखने की प्रवृत्ति चिंताजनक


चंडीगढ़ । आज के दौर में सीखने का ‘फास्ट-फूड’ तरीका लोकप्रिय होता जा रहा है, जहां लोग बिना गहराई से समझे जल्द परिणाम चाहते हैं। संगीत—चाहे भारतीय हो या पश्चिमी—हमेशा अनुशासन, धैर्य और समर्पण पर आधारित रहा है, लेकिन आधुनिक तकनीक और घटती एकाग्रता के कारण इसकी गहराई कहीं खोती जा रही है। यह विचार प्रख्यात शास्त्रीय संगीत गायक एवं गंधर्व महाविद्यालय, पंचकूला के डायरेक्टर तथा पंजाब यूनिवर्सिटी के म्यूजिक डिपार्टमेंट के पूर्व चेयरमैन प्रोफेसर अरविंद शर्मा ने चंडीगढ़ संगीत नाटक अकादमी द्वारा आयोजित लेक्चर-कम-डेमोंस्ट्रेशन सीरीज में देव समाज कॉलेज फ़ॉर वीमेन, सेक्टर 45 में शिक्षकों और विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।

उन्होंने कहा कि संगीत सीखना केवल सुर और ताल को समझने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमारी सोच, धैर्य और दृष्टिकोण को भी विकसित करता है। लेकिन वर्तमान में संगीत को ‘शॉर्टकट’ तरीके से सिखाने और सीखने की प्रवृत्ति बढ़ गई है। लोग बिना गहरी साधना के जल्द से जल्द कुछ गाने या बजाने योग्य हो जाना चाहते हैं, जिससे संगीत की आत्मा—अनुशासन और साधना—नज़रअंदाज़ हो रही है।
प्रो. शर्मा का मानना है कि पारंपरिक संगीत को बचाने के लिए शिक्षा और जागरूकता सबसे आवश्यक पहलू हैं। स्कूलों और कॉलेजों में इसे बढ़ावा देने से युवा पीढ़ी इसमें रुचि ले सकती है। डिजिटल प्लेटफॉर्म और सोशल मीडिया का सही उपयोग करके लोक और शास्त्रीय संगीत को नए जमाने के अनुसार प्रस्तुत किया जाना चाहिए, ताकि यह अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचे। फ्यूजन म्यूजिक भी एक प्रभावी तरीका हो सकता है, जिसमें पारंपरिक और आधुनिक संगीत का मेल युवाओं को आकर्षित कर सकता है। इसके साथ ही, सरकार और सांस्कृतिक संगठनों को लोक कलाकारों, गुरुओं और संगीतकारों को आर्थिक और सामाजिक रूप से सशक्त करना होगा। समाज को भी यह समझना होगा कि आधुनिकता का अर्थ अपनी जड़ों को भूल जाना नहीं है। डिजिटल प्रचार और गर्व की भावना जाग्रत करने से पारंपरिक संगीत को संरक्षित किया जा सकता है। जब तक हम अपनी कला को गर्व से नहीं अपनाएंगे, तब तक नई पीढ़ी इसे महत्व नहीं देगी। फिल्म और म्यूजिक इंडस्ट्री को भी इस दिशा में योगदान देना होगा।

TAGS: No tags found

Video Ad


Top