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सैकड़ों बच्चों को देख, तैयार की राम प्रतिमा।


ब्योरो/उत्तराखंड लाइव: अपनी जन्मभूमि पर आखिर आज श्री राम विराजमान हो ही गए। करोड़ों देशवासियों का सपना आज पूरा हो गया। इसी बीच सबसे विचित्र और दिव्य चर्चा का विषय बना रहा गर्वगृह में स्थापित होने वाली करोड़ो भारतीयों की आस्था का प्रतिक श्री राम प्रतिमा। जिसे मैसूर के मूर्तिकार अरूण योगीराज ने तैयार किया है। इंटरनेट पर वारल हो रही प्रभू श्री राम की इस मूर्ति को जिसने भी देखा मंत्रमुग्ध हो गया।


किसी चुनौति से कम नहीं था मूर्ति बनाना: मूर्तीकार अरूण योगीराज व अन्य दो मूर्तिकारों से प्रभू श्री राम की यह मूर्ती बनाने की जो कल्पना रखी गई वह अपने आप मंे किसी बड़े चैलेंज से कम नहीं था। ऐसी तस्वीर की कल्पना जो आज तक न किसी इंटरनेट व किताब मे भी नहीं देखी गई।
कल्पना की गई राम जन्मभूमि मंदिर के गर्वगृह में रखी जाने वाली श्री राम प्रतिमा ऐसी हो जो किसी पांच वर्ष के बालक जैसी दिखती हो। जिसके मुख में पांच वर्ष के बच्चे की मासूमियत बरकरार रहे। लेकिन इसके साथ ही प्रतिमा में राजवंशी होने की झलक भी नजर आए। यहॉ तक तब भी ठीक था। लेकिन सबसे बड़ा चैलेंज ये था कि राजवंशी पांच वर्ष के बालक की छवि होने के साथ ही प्रतिमा में श्री राम की दिव्यता का भाव भी प्रकट होना चाहिए।


स्कूल व उत्सवों में बच्चों को देखना शुरू किया : अरूण ने इस चैलेंज को अपना सौभग्य मानते हुए काम शुरू किया। लगातार 12 से 15 घंटे काम में जुटे रहे। लेकिन मूर्ति में वह भाव कहॉ से लाएं यह उन्हें भी समझ नहीं आ रहा था। इंटरनेट पर या किसी किताब में भी श्री राम की ऐसी कोई तस्वीर मौजूद नही थी। जिसे देखकर अरूण मूर्ति की कल्पना करते।


फिर उन्होंने इसके लिए अपनी खुद की रिशर्च शुरू कर दी। उन्होंने स्कूलों में जाना शुरू किया। बच्चों के उत्सवों में गए। पार्क में खेलते बच्चों के मुखमण्ड उनके हावभाव पर गौर किया। उनकी तस्वीरें ली। उन्होंने जगह-जगह यात्राएं की और उन सभी यात्राओं में अपनी दृष्टि तीन से लेकर पांच वर्ष के बच्चों के चेहरे,उनकी हंसी और अन्य भावभंगिमाओं पर गौर किया। उनकी ढेरसारी तस्वीरें भी ली।

लगातार 12 से 15 घंटे करते थे अरूण काम:  उसके बाद कारखाने में लौट कर उनके सामने विशाल वह पत्थर मौजूद था जिससे रामलला की वह दिव्य मूर्ती तैयार होनी थी। अरूण ने अपनी आस्था भरी नजरों से जब उस पत्थर को देखा तो उन्हें उसके भीतर रामलला की मूर्ती नजर आई। बस फिर क्या था वे लगातार रोजाना 12 से 15 घंटे मूर्ती तरासने में लग पड़े। मूर्ती तरासना इसीलिए भी कठिन था क्योंकि इसमें एक बार जो नक्काशी हो गई उसमें कोई बदलाव नहीं किया जा सकता था। इसीलिए प्रत्येक बार छेनी और हथोड़े का एकदम सटीक चलना बेहद जरूरी था।

छह महीने घर से दूर रहते हुए अरूण ने मूर्ती को वह स्वरूप दिया। जिसमें राजवंशी की झलक भी है, पांच वर्ष के बालक की मूस्कराते हुए आभा भी नजर आती है और दिव्यता का भाव भी दिखाई पड़ता है। मानो यह मूर्ती स्वयंभू प्रकट हुई हो। और आखिरकार मंदिर ट्रस्ट व जानकारों द्वारा अरूण की बनाई मूर्ति का चयन किया गया।

केदारनाथ में आदि शंकराचार्य की समाधि 2013 की कुदरती त्रासदी में तबाह हो गई थी। उनकी प्रतिमा को कर्नाटक के मूर्तिकार अरुण योगीराज ने बनाया है, जिनका परिवार पांच पीढ़ियों से मूर्तिकला से जुड़ा हुआ है और मैसुरु के वाडियार घराने के लिए एक से बढ़कर एक मूर्तियां बनाने के लिए मशहूर है। योगीराज खुद एमबीए ग्रेजुएट हैं, लेकिन उन्होंने कुछ वर्षों तक प्राइवेट फर्म के लिए काम करने के बाद अपना पुश्तैनी पेशा अपना लिया है।

 

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