स्मार्थ्य को पहचानो
स्मार्थ्य को पहचानो
मानव चेतना मे असीम शक्ति है,इस शक्ति को पहचान कर उसका सदुपयोग अपने और समाज के लिए करना सभी के लिए लाभ दायक है,प्रभु भी यही चाहते हैंकि उसकी बनाई हुई सृष्टि सुव्यस्थित और उपयोगी बनी रहे साथ ही उसकी सबसे सुंदर रचना मानव को किसी प्रकार का कष्ट न हो,ईश्वर ने पंचभूतों के रूप में पृथ्वी,जल,अग्नि, आकास और वायु प्राकृतिक एवम् विशुद्ध स्वरूप में हमें प्रदान की है,इंतत्वों के बिना मानव जीवन के स्वरूप की कल्पना भी सम्भव नही है,किंतु आज मानव जीवन के अपने स्वार्थ प्रकात्मा द्वारा दी गई प्रकृति के साथ मनमानी छेड़ छाड़ कर उसे निरंतर प्रदूषित कर रहा है,जिससे सम्पूर्ण मानव जगत का जीवन संकट में पड़ता जा रहा है,प्रभु की इस सुंदर संरचना सृष्टि को प्रदूषित करने का कोई अधिकार मनुष्य को नही है,इस तरह के कार्य करके मनुष्य अपनी शक्ति का दुरुपयोग कर रहा है,जिसके परिणाम स्वरूप तमाम अनहोनी घटनाए देखने मिल रही हैं,
शक्तिकी वही सार्थक होती है,जो बिना किसीको हानि पहुंचायें परिणाम के लिऐ उपयोगी हो, शक्ति की एक सीमा होती है,और उस सीमा के अन्दर ही कोई शक्ति किसीको लाभ पहुंचा सकती है,सीमाके बहार होने पर वही शक्ति अपना विपरीत प्रभाव डालती है,अर्थात लाभ के बजाय हानि मतलब यह हैकि इसे अपनी सामर्थ्य की जनकल्याण की भावन के साथ रचनात्मक कार्योंमें लगाना होगा,आज समाजमें इसी बातकी आवश्यकता है,सामर्थ्य और शक्ति में अंतर है,सामर्थ्य सीमित होती है,शक्ति असीमित होती है,सर्व शक्तिमान प्रमात्मा का दिव्य अंस जब हमारी चेतना आर्थिक आत्मा में समाहित हैतो फिर हमे किस बात की कमी है,इस शक्ति का सदुपयोग हमे अपने अंत:करण के निर्माण के साथ साथ ही अपनी प्रज्ञा और विवेक के अनुसार करना होगा,आचरण की सात्विकता, शालीनता, सहिष्णुता,विनम्रता जैसे सद्गुण हमारी आत्मीयता को विस्तार देते हैं,यह हमारे अंत: कारण की शक्तियां हैं,इनसे हम प्रभाव साली व्यक्तित्व का निर्माण होता है,इन शक्तियों को हमे विकसित करना है,क्यों कि स्वयं के साथ-साथ दूसरों को भी मानवीय गुणों से शक्ति शाली बनाना है,इसके लिए सर्व प्रथम स्वयं मे यह पात्रता अर्जित करनी होगीकि हम अपने सद्गुणों की शक्ति दूसरों को भी दे सके उसी शक्ति का महत्व होता है,जो दूसरों के काम आ सके,संचित गुणों की शक्ति से हम अपना अपने परिवार का और समाज का भला कर सकते हैं,किंतु पुण्य अर्जित करने हेतु त्याग और परिवार की भावना हमे अपने अंदर विकसित करनी होगी,इससे ही सर्वत्र सुख शांति और समृद्धि का विस्तार होगा, जिससे हम सुखी होगें साथ ही साथ हमसे संबंधित अन्य लोग भी खुशी होगें,
M S Rawat,
9313026304.01203262566.