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“वैदिक विवाह” गंतव्य के रूप में पहचान बनाएगा उत्तराखण्ड

प्रक्रति के बीच वैदिक संकृति से सम्पन्न होगा विवाह

आशीष लाखेड़ा / उत्तराखंड लाइव 

हाल ही में उत्तराखण्ड पहुंचे प्रधानमंत्री “नरेन्द्र मोदी” ने उत्तराखण्ड में वेडिंग डेस्टिनेशन को लेकर जो विचार साझा किए वह निश्चित तौर पर काबीले तारीफ है। देवभूमि उत्तरखण्ड अपनी प्रकृति और संस्कृति के लिए विश्वभर में विख्यात है। लेकिन लगता है कि जल्द ही देवभूमि उत्तराखण्ड अपनी वैवाह संस्कार से जुड़े रीतिरिवाज व परम्पराओं के लिए भी विश्व में पहचान बनाने वाला है।

प्रधानमंत्री मोदी के अभिभाषण के पीछे छिपे भाव और मंतव्य को समझें तो वे उत्तरखण्ड में होने वाले विवाह को मात्र किसी हिल स्टेशन पर हुए विवाह के तौर पर नहीं देख रहे बल्कि वैदिक विवाह गंतव्य की तरह देख रहे हैं। जहॉ प्रकृति के बीच सलीखे से वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ पूरे विधिविधान से विवाह संपन्न हो।

हमारे वैदिक धर्मग्रंथों के मुताबिक सर्वमान्य “विवाह” संस्कार पहले पहल उत्तराखंड(गढ़वाल) की धरती पर ही सम्पन्न हुआ। जब वैदिक रुद्र (भगवान शिव) ने हिमालय की इसी घाटी में हेमंत ऋषि व मैनावती की पुत्री काली-पार्वती से केदार क्षेत्र के त्रिजुगी नारायण स्थल पर विवाह सूत्र
में बंधे। उस अलौलिक विवाह की साक्षी, पवित्र अग्नि अनंतकाल से आज तक यहॉ प्रज्वलित है। द्वापर युग में श्रीकृष्ण पौत्र अनिरुद्ध एवं बाणासुर पुत्री उषा का विवाह भी यहॉ के उखीमठ स्थल पर सम्पन्न हुआ था।

अनुठी है यहॉ की मांगल गायन की परम्परा :— उत्तराखण्ड के विवाह में मांगल गीत गायन की अनुठी परम्परा सदियों से चली आ रही है। पहले देवताओं का स्मरण किया जाता है। यहाँ के समस्त मांगल गीत वैदिक ऋचाओं/मंत्रों से अभिप्रेरित हैं। जिसमें भूमि,भूमि के रक्षक देव,भूमिपाल, द्वार के रक्षक गणेश, झरोखे के रक्षक नारायण, पन्चनाम देवताओं, इष्ट-कुल देवता, पितृ देवताओं के साथ-साथ समस्त भूमंडल के देवताओं से शुभ कार्य में जय, यश व सफलता की कामना की जाती है। इसके बाद कव्वे (पित्रों का संदेशवाहक माना जाता है) को बुला कर उससे चारों दिशाओं में शगुन सूचना देने का आग्रह किया जाता है। तोते से आग्रह किया जाता है की वो जाकर , देवी सावित्री , लक्ष्मी, पार्वती, सीता और अनेक सुहागिन नारियों को शगुन (माँगल) गाने तथा हमारे इस मंगल कार्य में शामिल होने के लिए न्यौता दे आये।


वेदी व स्तम्भ पूजन की परम्परा: यहॉ कन्या के घर पर विवाह हेतु मिटटी-पत्थर व गोबर के उपयोग से चौकोर वेदी बनाई जाती है। वेदी की प्रत्येक भुजा कन्या के हाथ के माप से सवा चार हाथ (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष चतुर्विध पुरुषार्थ की प्रतीक) और ऊंचाई सवा हाथ रखी जाती है। वेदी के एक कोने पर केले का फलदार वृक्ष तथा बाकी तीन कोनों पर चीढ़, पद्म, आम्र,देवदार की शाखें स्थापित की जाती हैं। इन स्तंभों पर ईशान से आरंभ करके क्रमश: ब्रह्मा, विष्णु,रुद्र और इन्द्र, चार मुख्य देवों के साथ चारों वेदों की भी स्थापना होती है।

वेदी के चारों ओर सवा दो फुट की दूरी पर ईशान दिशा से शुरू कर चीड़/देवदारु, आम्र पल्लव युक्त मिट्टी के जल कलशों पर सूर्य, गणपती, अनंत, स्कन्द, यम, वायु, सोम, वरुण, वसु, कुबेर, बृहस्पति व विश्वकर्मा इन 12 देव स्तंभों की भी स्थापना की जाती है। इस प्रकार विवाह वेदिका पर कुल 16 स्तम्भ स्थापित किए जाते है। वेदी और इन 12 स्तंभों के मध्य की परिधि में ही फेरे(भांवरें) डाले जाते हैं। वेदी के ऊपर चंदोया(पीले रंग की एक चादर जिसके बीच में चावल, हल्दी की गाँठ, सुपारी, राइ के दाने बंधे रहते हैं) चढ़ाया जाता है।

मांगलगीतो में वेदी निर्माण के दौरान पिता-पुत्री का संवाद को बताया जाता है: कन्या अपने पिता से पूछती है की आप किस—किस वस्तु से वेदी तैयार करोगे। जिसके उत्तर में पिता अपनी समस्त संपत्ति उस पर न्यौछावर कर सोने-चांदी,रत्न इत्यादि से वेदी तैयार करने की बात कहता है। अपने पिता की आर्थिक स्थिति को जानते हुए फिर कन्या अपने पिता से पृथ्वी की रीति के अनुसार वेदी बनाने को कहती है। जिस पर पिता भावविभोर होकर अपने कन्या से वेदी को मिट्टी-पत्थर, केले, चीड़, पद्म, आम के वृक्षों के स्तम्भ से से वेदी तैयार करने की बात कहता है। पिता-पुत्री का यह मार्मिक संवाद श्रोताओं की आखों को भिगो देता है।

उत्तराखण्डी विवाह में वाद्ययंत्रों का है खास महत्व : — उत्तराखण्ड में होने वाले विवाह में ढोल दमउ का अपना धार्मिक महत्व है। इन्हीं तालों में देवी-देवताओं के रूप को जागृत करने के लिए सबसे पहले बजाई जाने वाली ताल, ‘मंगल बधाई ताल’ है. जिसके माध्यम से उनका आवाहन किया जाता है. इसके अतिरिक्त सभी मंगल कार्य, शादी, हल्दी हाथ, बारात प्रस्थान, विभिन्न संस्कारों तथा पूजा-अनुष्ठानों आदि कार्यों में विशेष प्रकार की तालों को बजाया जाता है। ढोल सागर में लगभग 1200 श्लोकों का वर्णन किया गया है। इन तालों के माध्यम से वार्तालाप व विशेष सन्देश का आदान-प्रदान भी किया जाता है। अलग समय पर अलग-अलग ताल बजायी जाती है जिसके माध्यम से इस बात का पता चलता है की कौन-सा संस्कार या अवसर है।

डॉ0 सर्वेश उनियाल, परियोजना अधिकारी—एचoएनoबी श्रीनगर गढ़वाल केन्द्रीय विश्वविद्यालय उत्तरखण्ड।

मेरा मानना यह है कि हमारे देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के भाव व दूरदर्शिता को समझना बेहद जरूरी है। निश्चित तौर पर उत्तराखण्ड को अब “वैदिक विवाह” गंतव्य के रूप में पहचान मिलनी चाहिए। यहॉ मेजर गोर्की चंदोला जैसे लोग पहले से ही ऐसी गतिविधियों को बढ़वा दे रहे हैं। पद्मश्री विभूषित मैती आंदोलन के प्रणेता श्री कल्याण सिंह रावत जी जैसे लोगों ने तो विवाह के दौरान वैवाहिक जोड़े द्वारा पौध रोपण किए जाने की परम्परा शुरू कर एक अलग ही कीर्तिमान स्थापित किया है। उत्तराखण्ड में मॉ गंगा और हिमालयीय पर्वत श्रृखलाएं जैसे प्राकृति और दिव्यता के बीच होने वाला वैवाहिक बंधन सौभाग्यशाली और अटूट साबित होगा।

पठाल हाउस में हुआ था  गंतव्य विवाह”:- पौड़ी जिले के राई चंदोला गांव के निवासी मेजर मेजर गोर्की चंदोला जैसे लोग पहले से ही ऐसे विवाह की अवधारणा को धरातल पर उतार चुके हैं। देहरादून में उनके पहाड़ी शैली से तैयार पठाल हाउस पर वर्ष 2020 में मिर्जापुर टीवी सीरियल के कलाकार प्रियांशु पैन्यूली और अदाकारा वंदना जोशी परिणय सूत्र में बंधे। इस विवाह में परम्परागत उत्तराखण्डी परम्पराओं के अनुरूप मांगल गीतों की प्रस्तुति दी गई। वहीं परम्परागत ढोल दमउ की थाप पर सभी वैवाहिक संस्कार पूरे किए गए।



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