क्रांतिकारी रासबिहारी बोस के योगदान को याद किया गया
देहरादून : दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र की ओर से महान क्रांतिकारी व स्वतंत्रता सेनानी रास बिहारी बोस को उनके भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में दिये गये योगदान को याद किया गया। संस्थान के सभागार में खोजी पत्रकार राजू गुसाईं, सामाजिक कार्यकर्ता व शोधार्थी मुकेश सेमवाल तथा सामाजिक इतिहासकार डाॅ. योगेश धस्माना ने उनके स्वतंत्रता संग्राम में दिये गये क्रांतिकारी योगदान व देहरादून से जुड़े अनेक महत्वपूर्ण प्रसंगों पर प्रमाणिक दस्तावेजों व स्लाइड के माध्यम से प्रकाश डाला। कार्यक्रम के प्रारम्भ में दूरदर्शन के डीडी भारती द्वारा रास बिहारी बोस पर 22 मिनट की फिल्म ‘अनबीटन हीरो रास बिहारी बोस‘ दिखाई गयी।
उल्लेखनीय है कि स्वतंत्रता सेनानी रास बिहारी बोस के भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में चार दशक समय की लंबी भूमिका देहरादून और जापान में रही, जहां उन्होंने आईएनए की स्थापना की थी। वह 1906 से 1913 तक देहरादून में रहे। उन्होंने एफआरआई में हेड क्लर्क के रूप में काम किया और पूरे उत्तर भारत में स्वतंत्रता आंदोलन का बीजारोपण किया और कई क्रांतिकारियों की भर्ती की और उन्हें प्रशिक्षित किया। 23 दिसंबर, 1912 को दिल्ली में वायसराय लॉर्ड हार्डिंग के काफिले पर बमबारी की योजना बनाने और उसे क्रियान्वित करने का श्रेय उन्हें दिया जाता है। ब्रिटिश सरकार ने बमबारी के लिए चार क्रांतिकारियों को फाँसी पर लटका दिया था, हालाँकि, रासबिहारी बोस, जिन्हें मास्टरमाइंड के रूप में नामित किया गया था पर वे इस जाल से बच गए। उन्हें बंगाल क्रांतिकारी आंदोलन और उत्तर भारत के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में देखा जाता है। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान प्रसिद्ध गदर विद्रोह को कुचलने के बाद, रासबिहारी बोस 1915 में जापान चले गए और अपना अंतर्राष्ट्रीय नेटवर्क विकसित किया। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, उन्होंने आईएनए का गठन किया और बाद में इसे नेताजी सुभाष बोस को सौंप दिया।
पत्रकार राजू गुसाईं ने कहा कि प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी और आजाद हिंद फौज के संस्थापक अध्यक्ष रास बिहारी बोस देहरादून में रहे और यहां वन अनुसंधान संस्थान में अपनी सेवाएं दीं। उन्होंने अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों को चुपचाप संचालित किया और इसके लिए वे लाहौर और पंजाब जैसे दूरदराज के स्थानों पर चले जाते थे। रास बिहारी बोस के देहरादून से सम्बन्ध और उनकी गतिविधियों के बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। उन्होंने बातचीत में बोस के दून में बिताए समय, वन अनुसंधान संस्थान में उनके दस्तावेज और अन्य जुड़ी घटनाओं पर बुनियादी जानकारी श्रोताओं की दी। जापान में रास बिहारी बोस के परिवार के सदस्यों से जुड़ने के प्रयासों पर भी उन्हांेने प्रकाश डाला।
सामाजिक कार्यकर्ता और शोधकर्ता मुकेश सेमवाल ने उनके दिल्ली षड्यंत्र मामले का विस्तृत विवरण दिया जिसने रास बिहारी बोस को भारत में नायक बना दिया। उन्होंने अपनी बात दिल्ली-लाहौर साजिश मामले पर केन्द्रित की। उन्हांेने कहा कि 23 दिसंबर 1912 को जब अंग्रेजों ने अपनी राजधानी बंगाल से दिल्ली स्थानांतरित कर दी थी, तब रासबिहारी बोस और बसंत बिश्वास द्वारा वायसराय लॉर्ड हार्डिंग पर बम फेंका गया था। यह ब्रितानी पुलिस के लिए सिरदर्द बन गया था कि क्रांतिकारियों का पता लगाए। अंततः कुछ अंदरूनी लोगों की मदद से अंग्रेजों ने पकड़ लिया और क्रांतिकारियों पर मुकदमा चलाया गया और चार लोगों को फाँसी पर लटका दिया गया। इस मामले में व गदर आंदोलन के बाद अंग्रेजों ने निष्कर्ष निकाला कि इस विद्रोह के प्रमुख नेता रासबिहारी बोस थे।
डाॅ. योगेश धस्माना ने कहा कि रासबिहारी बोस राष्ट्रीय आंदोलन के ऐसे क्रांतिकारी राष्ट्रवादी नेता थे,जिन्होंने देहरादून को अपनी कर्मभूमि बनाते हुए पहले इंडियन इंडिपेंस लीग की स्थापना की फिर जापान में आजाद हिंद फौज का गठन कर देश की आजादी में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। उन्होंने कहा कि देश के राष्ट्रीय आंदोलन में रास बिहारी के योगदान को पर्याप्त स्थान नही मिल सका।एफआरआई घोसी गली और दर्शन लाल चौक सहित टैगोर विला में बम बनाने की प्रयोगशाला से जुड़ी उनकी स्मृतियों को युवा पीढ़ी तक पहुंचाने के प्रयास होने चाहिए।उन्होंने कहा कि रास बिहारी बोस ने देश की आजादी के लिए आर्य समाज,अरविंदो और खुदीराम बोस के सिद्धांतो को लेकर अंग्रेजो की साम्राज्यवादी नीतियों और विघटनकारी ताकतों के विरुद्ध देश में युवाओं को संगठित किया। इस काम में उन्हें दून घाटी में रह रहे राजा महेंद्र प्रताप का भी सक्रिय सहयोग मिला था।
कार्यक्रम के प्रारम्भ में दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र के प्रोग्राम एसोसिएट चन्द्रशेखर तिवारी ने अतिथि वक्ताओं व सभागार में उपस्थित लोगों का अभिनंदन किया।इस अवसर पर सभागार में पूर्व प्रमुख सचिव,उत्तराखंड, विभापुरी दास, डॉ.बुद्धि नाथ मिश्रा, शैलेन्द्र नौटियाल रामचरण जुयाल, सुंदर सिंह बिष्ट,डॉ.अतुल शर्मा, मनीष ओली,सुरेंद्र सजवाण, अरुण कुमार असफल,इरा चौहान, सुशीला भंडारी,हिमांशु आहूजा, मौजूद थे। इतिहास के रुचिवान लोग, लेखक, साहित्यकार, साहित्य प्रेमी, सामाजिक कार्यकर्ता, बुद्विजीवी और पुस्तकालय के युवा पाठक सदस्य उपस्थित रहे।