यहॉ कौवे छोड़ने आते हैं अपना शरीर।
ब्यूरो/ उत्तराखण्ड लाइव: उत्तराखंड के चमोली जनपद में विश्व विरासत फूलों की घाटी से एक मार्ग हिमशिखर हाथी पर्वत की तलहटी में शिलाखंडों के बीच मौजूद है कागभुसुंडिताल। यहॉ घाटियां,संकरा मार्ग जरूर है लेकिन आपको रोमांचित करने के लिए काफी है। सुंदरता से युक्त ये यह ट्रैकिंग मार्ग आपको हिमालयीय दुर्लभ ताल तक ले जाता है। ताल के आस—पास आपको कौवों के पंख बिखरे नजर आ जाएंगे। ऐसी मान्यता है कि यहां ये कौवे चिर काल से आज तक अपना शरीर त्यागने आते हैं।
जनश्रुति के अनुसार अयोध्या में काकभुशुण्डि नाम का एक राम भक्त रहा करता था। वह सारा दिन भक्ति में ही तल्लीन रहा करता था। एक बार उस भक्त की भेंट सत्संग के दौरान लोमश ऋषि से हुई। ऋषि के कुछ विचारों से वह सहमत नही हुआ तो विनम्रता से उसने अपना विरोध प्रकट कर दिया। इस पर ऋषि कुपित हो गए और शाप देकर भक्त को कौवा बना दिया। उन्हीं ऋषि के अनुसार शाप से छुटकारा पाने के लिए उन्हें राम मंत्र और इच्छामृत्यु का वरदान दिया था। इसके बाद उन्होंने पूरा जीवन कौवा के रूप में ही बीताया। माना जाता है कि काकभुशुण्डि ने वाल्मीकि से पहले ही रामायण गिद्धराज गरूड़ को सुना दी थी।
कैसे पहुंच सकते हैं
काकभुशुण्डि ताल पहुंचने के लिए पहले जोशीमठ तक आना पड़ता है। यहां से आगे काकभुशुण्डि तक जाने के दो रास्ते हैं। एक भुइंदर गांव से घांघरिया के पास से जाता है, जबकि दूसरा गोविंद घाट से जाता है।
यहां से नजदीक में जॉली ग्रांट हवाई अड्डा देहरादून में है। इस झील से एयरपोर्ट की दूरी लगभग 132 किलोमीटर है। एयरपोर्ट से झील तक जाने के लिए कार और टैक्सी मिलती है। झील से नजदीकी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है। यहां से सड़क रास्ते के जरिये जोशीमठ तक पहुंचा जा सकता है।