चंडीगढ़ के 32 स्कूल और कॉलेजों के 44 एक्जेंप्लरी टीचर्स को दिए गए गर्ल्स राइट्स एम्बेसडर अवार्ड्स
चंडीगढ़। नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 128 वीं जयंती, नेशनल डे ऑफ गर्ल चाइल्ड और युवसत्ता-एनजीओ की 35वीं वर्षगांठ के मौके पर वीरवार को सेक्रेड हार्ट सीनियर सेकेंडरी स्कूल, सेक्टर-26 में शहर के 32 स्कूलों और कॉलेजों की 44 एक्जेंप्लरी टीचर्स को ‘गर्ल्स राइट्स एम्बेसडर अवार्ड्स’ प्रदान किए गए। इस अवसर पर उपस्थित प्रमुख लोगों में स्कूल की प्रिंसिपल सिस्टर वेनिता जोसेफ, चंडीगढ़ बाल अधिकार संरक्षण आयोग-सीसीपीसीआर की चेयरपर्सन शिप्रा बंसल, सीसीपीसीआर की पूर्व चेयरपर्सन और पंजाब यूनिवर्सिटी टीचर्स एसोसिएशन (पूटा) की पूर्व चेयरपर्सन प्रो.देवी सिरोही, यूटी प्रशासन, चंडीगढ़ की बाल कल्याण समिति के सदस्य व एडवोकेट नील रॉबर्ट्स, प्रौढ़ शिक्षा, चंडीगढ़ की असिसटेंट डॉयरेक्टर राज बाला और युवसत्ता के संस्थापक प्रमोद शर्मा शामिल थे।
इस अवसर पर स्कूली छात्राओं ने लड़कियों और महिलाओं के अधिकारों और सम्मान को बढ़ावा देने वाले संगीत नाटक और ग्रुप डांस प्रस्तुत किए। लड़कियों के अधिकारों के प्रति सम्मान और आदर के प्रतीक के रूप में गुलाबी पगड़ी पहने 1500 सेक्रेड हार्ट स्कूल की छात्राएं भी इस कार्यक्रम में शामिल हुईं। प्रिंसिपल सिस्टर वेनिता जोसेफ ने अपने स्वागत भाषण में इस बात पर जोर दिया कि महिलाएं और लड़कियां दुनिया की आधी आबादी हैं तथा उनकी संख्या चार अरब है और इन चार अरबों के लिए अपने अधिकारों के लिए खड़े होने और अपनी वास्तविक क्षमता का एहसास करने के लिए एक-दूसरे का समर्थन करने का समय आ गया है। इस पहल की सराहना करते हुए शिप्रा बंसल ने कहा कि महिलाएँ और लड़कियाँ दुनिया की आधी आबादी का प्रतिनिधित्व करती हैं। लैंगिक समानता, एक मौलिक मानव अधिकार होने के अलावा, शांतिपूर्ण समाज, पूर्ण मानव क्षमता और सतत विकास को प्राप्त करने के लिए आवश्यक है। इसके अलावा, यह भी पाया गया है कि महिलाओं को सशक्त बनाने से उत्पादकता और आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलता है।
प्रो. देवी सिरोही ने कहा कि भारत में महिलाओं की स्थिति सदियों से कई बड़ी चुनौतियों का सामना कर रही है। प्राचीन काल में पुरुषों के बराबर दर्जा पाने से लेकर मध्यकाल के बुरे दौर तक, कई सुधारकों द्वारा समान अधिकारों को बढ़ावा देने तक, भारत में महिलाओं का इतिहास घटनापूर्ण रहा है। लेकिन अब समय आ गया है कि 21वीं सदी के आधुनिक भारत की लड़कियां और महिलाएं पुरुषों द्वारा उनके जीवन में लिखे, परिभाषित और डिजाइन किए गए भाग्य के प्रति मूक न बनें, बल्कि उन्हें अपने अधिकारों की मांग करने और उन्हें प्राप्त करने के लिए अपनी आंतरिक शक्ति पर विश्वास करना चाहिए। वहीं, नील रॉबर्ट्स का मानना था कि महिलाओं द्वारा ‘ना कहने की शक्ति’ किसी भी अभियोजन, दुर्व्यवहार या अंतहीन हिंसा के प्रति मूक दर्शक बने रहने के लिए सबसे महत्वपूर्ण है।
अपने समापन भाषण में प्रमोद शर्मा ने बताया कि युवसत्ता-एनजीओ के साथ अपनी यात्रा के पिछले 35 वर्षों में उन्हें युवाओं, विशेषकर लड़कियों को सशक्त बनाने के लिए कई नवीन रणनीतियों और कार्यक्रमों को लागू करने का मौका मिला। अब उनका सपना चंडीगढ़ को दुनिया का पहला ऐसा शहर बनाना है जो 2030 तक यूएन एसडीजी 5 (संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्य 5) के अनुरूप शहर होगा। उन्होंने कहा कि एसडीजी 5 लैंगिक समानता के लिए है और उनके अनूठे गर्ल्स इंडिया प्रोजेक्ट और स्कूलों और कॉलेजों में गर्ल्स पार्लियामेंट्स, शहर में सुरक्षित सार्वजनिक स्थानों की पहल और अधिक से अधिक महिला पुलिस स्टेशनों के लिए अभियान के माध्यम से चंडीगढ़ में लैंगिक समानता का यह लक्ष्य असंभव नहीं लगता है। कार्यक्रम का समापन उन एक्जेंप्लरी टीचर्स को ‘गर्ल्स राइट्स एम्बेसडर अवार्ड्स’ प्रदान करने के साथ हुआ, जो अपने स्कूलों और कॉलेजों में लड़कियों के अधिकारों के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास कर रहे हैं।