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यदि साक्षात भगवान के घर में ही दर्शन करने हैं तो माता-पिता के दर्शन कर लो : आचार्य ईश्वर चंद्र शास्त्री


चण्डीगढ़ : कलयुग में भगवद्प्राप्ति सबसे आसान है। सतयुग में लाखों वर्ष तप करने से, त्रेता और द्वापर युग में बड़े-बड़े यज्ञ करने से कठिनता से भगवान का साक्षात्कार होता था। परंतु कलियुग में भगवान की कथा और भगवान के नाम का आश्रय लेकर कलियुग के साधक बड़ी ही सरलता से भगवत प्राप्ति कर लेते हैं और यदि साक्षात भगवान के घर में ही दर्शन करने हैं तो माता-पिता में भगवान के दर्शन करो।

श्री खेड़ा शिव मंदिर, सेक्टर 28 में हो रही शिव महापुराण की कथा में दक्षिण भारत के परम भक्त पुंडलीक का उदाहरण देते हुए आचार्य ईश्वर चंद्र शास्त्री जी ने बताया कि पुंडलीक माता-पिता की खूब सेवा करता था। कभी उसने मंदिर के दर्शन भी नहीं किए थे। उसकी पितृ-भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान स्वयं उसके पास दर्शन देने के लिए पहुंचे। स्मृति कहती हैं की माता-पिता के प्रसन्न होने पर सभी देवता प्रसन्न हो जाते हैं। माता-पिता में भगवद् बुद्धि रखो, उनको भगवान का ही रूप समझो, माता-पिता की सेवा करो, उनकी आज्ञा में रहो। ऐसा करने से भगवान महादेव शीघ्र ही प्रसन्न हो जाएंगे। माता-पिता भगवान का ही दूसरा रूप हैं। उपनिषद कहते हैं मातृ देवो भव, पितृ देवो भव। माता-पिता की सेवा करने से, उनकी आज्ञा का पालन करने और भगवद् बुद्धि रखने से भगवान बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं। भगवान महादेव का चरित्र हमें यही शिक्षा देता है की माता-पिता को भगवान मानो। माता-पिता में सभी तीर्थ निवास करते हैं।

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