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मनुष्य को अंतर्मन से ईश्वर की स्तुति, प्रार्थना और उपासना करनी चाहिए : संत रमेश भाई शुक्ला


चण्डीगढ़ : प्राचीन श्री गुग्गामाड़ी हनुमान मंदिर के सामने रामलीला मैदान, सेक्टर 20 में नौ दिवसीय दिव्य हनुमान कथा महोत्सव के चतुर्थ दिवस के दौरान कथा व्यास आचार्य श्री संत रमेश भाई शुक्ला ने प्रवचन के दौरान कहा कि हनुमान जी को भजने मात्र से प्राप्ति नहीं होगी बल्कि उनसे सीख भी लेनी चाहिए। हनुमान जी कहते थे कि मैं जो कुछ भी कर रहा हूं, वह राम जी करवा रहे हैं। वे खुद को कर्ता नहीं मानते हैं। उनमें समर्पण की भावना है। जैसे गुब्बारा अंदर की हवा से उड़ता है वैसे ही मनुष्य को अंतर्मन से ईश्वर की स्तुति, प्रार्थना और उपासना करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि माता-पिता, आचार्य, अतिथि, देवता समान हैं। उनका सत्कार अति आवश्यक है। नदी की तरह कथा के भी पांच गुण हैं। नदी का प्रवाह अर्थात धारा में बहना है। कथा का भी एक प्रभाव व धारा होती है जो आगे बढ़ती है। द्वितीय गुण इसका गंतव्य की खोज है। नदी का लक्ष्य सागर को पाना है कथा की धारा का लक्ष्य भी सागर है सागर का अर्थ करुणा अर्थात दया सागर है। इसका लक्ष्य भी परमात्मा प्राप्ति है। तृतीय गुण दो किनारों का होना है। नदी के दो तट होते हैं इसी प्रकार कथा के भी दो तट हैं प्रथम लोक द्वितीय वेद। लोक का अर्थ लोक व्यवहार रीतियाँ, मान्यताएं इत्यादि हैं। वेद का अर्थ वैदिक परमार्थ व्यवहार है। नदी का चतुर्थ गुण दोनों किनारों को हरा भरा रखना है। कथा सुनने वाले को यह प्रसन्नचित करती है वह तनाव से रहित हो जाता है और व्यथा दूर हो जाती है। नदी का पांचवा गुण साधु संतों का स्नान करना है। साधु संतों के स्नान करने पर नदी पवित्र हो जाती है। कथा में संतों के आगमन से कथा का मतलब और भी बढ़ जाता है।

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