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पौड़ी रामलीला: जब धर्म नहीं, कला बनी पहचान


पौड़ी के मुद्दी भाई और साहिल खान की कहानी

गढ़वाल की रामलीलाओं में मुस्लिम कलाकारों की अमिट छाप — मुद्दी भाई से लेकर साहिल खान तक

पौड़ी की मिट्टी में रचा-बसा भाईचारा: मुस्लिम परिवारों की पीढ़ियां सहेज रहीं रामलीला की परंपरा

पौड़ी,  (योगेश धस्माना) :  उत्तराखंड के अल्मोड़ा,पौड़ी समेत प्रायः सभी कस्बों में हिंदुओं के पर्वों में सभी वर्ण धर्म और जातियों की भागीदारी समरसता का उत्कृष्ट उदाहरण रही है।

रावण मेघनाथ,के पुतले बनाने से लेकर राम विवाह पर आतिशबाजी और पर्दे के पीछे ग्रीन रूम तक सांझी विरासत के दर्शन होते रहे हैं। नंदप्रयाग रामलीला के हनुमान इमदाद हुसैन,पौड़ी में सुषेण वैद्य के रूप में ज्ञान विक्टर, खरदूषण की भूमिका में,मुहम्मद सलार,रावण दरबार के सेनापति जब्बार भाई,ओर अब विगत दो वर्षों से जटायु सहित कई अन्य भूमिकाओं का किरदार निभाने वाले साहिल खान लोक संस्कृति के सांझी विरासत को नई पीढ़ी तक पहुंचा रहे हैं।

पौड़ी में इन्हीं भूली बिसरी यादों के बीच एक नाम महबूब अहमद का आता है ,जिन्होंने लगभग 35 वर्षों तक रामलीला के पुरुष महिला सभी पात्रों का मेकअप कर,कलाकारों के प्रति जनता में कौतूहल और आकर्षण पैदा किया। इनके पिता छोटे याकूब 1947 में बंटवारे के बाद अपने रिश्तेदारों के साथ देहरादून ओर फिर पौड़ी चले आए थे।

एक कुलीन ओर संभ्रांतपरिवार में जन्मे महबूब भाई पौड़ी कलेक्ट्रेट में नौकरी करने के साथ ही पौड़ी के विविध लोक मंचों में सक्रिय भागीदार रहे।
पौड़ी का यह उदारवादी मुस्लिम परिवार उच्च शिक्षित ओरहिंदुओ के पर्वों पर बहुत सक्रिय रह कर गढ़वाली बोली में आज दिन तक बात करते देखें जा सकते हैं। इनके पुत्रो यूनिस कुरैशी,अख्तर, मुहम्मद अजाक ,उर्फ अज्जू भाई रियाज भाई के लोक जीवन में पलायन के बाद भी,सांझी विरासत की जड़ो से अपने को बांधे हुए है।इनके परिजनों में कर्नल अजीजुल कुरैशी , पौड़ी की एक यादगार शख्सियत रही हे।
मुझे 1970 के दशक से याद हे कि जब महमूद कुरैशी उर्फ मुद्दी भाई ग्रीन रूम अपने अन्य सहयोगी यादव चंद्र गुप्ता के साथ रामलीला के कलाकारों की रूप सज्जा करने में में व्यस्त रहते। देर रात तक रामलीला के आयोजन ओर सुबह कलेक्ट्रेट की नौकरी में अपने दायित्व का निर्वहन करते।

आज की रामलीला की पीढ़ी भी अब इन्हें भूल चुकी हे। किंतु इसी बीच नई पीढ़ी के युवक साहिल खान ने रामलीला में प्रवेश कर अपने किरदार से दर्शकों का ध्यान अपनी ओर खींचने में सफलता प्रात की है। रामलीला के व्यवस्था ओर अभिनय दोनों क्षेत्रों में इस युवक ने पौड़ी के रंगकर्मियों ओर कला प्रेमियों का दिल भी जीत लिया है।रामलीला में सीता स्वयंवर हो,या भरत मिलाप तक इकरामली द्वारा निशुल्क आतिशबाजी को कौन भूल सकता है।

पाठकों के लिए महमूद अहमद कुरैशी,ओर साहिल खान की जटायु भूमिका के कुछ फोटो साझा कर रहा हूँ। इस सहयोग के लिए टिन्नू रावत, अनुराग रावत का आभार।

 

 

 

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