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पांचवी अनुसूची से ही उत्तराखंड को सुरक्षा कवच


चंडीगढ़: उत्तराखंड की अस्मिता और इसके जल, जंगल व जमीन जैसे संसाधनों की लूट से बचाने के लिये उत्तराखंड को संविधान की पांचवी अनुसूची में शामिल करने की मांग इस अभियान से जुड़े संगठनों ने की है। वक्ताओं ने कहा कि सीमित संसाधनों वाले उत्तरखंडियों की विरासत का अतिक्रमण बड़े पैमाना पर किया जा रहा है, उसे पांचवी अनुसूची में शामिल करने से ही सुरक्षा कवच मिल सकता है।

इस मुहिम को लेकर उत्तराखंड एकता मंच की बैठक गढ़वाल भवन परिसर चंडीगढ़ सेक्टर 29 में संपन्न हुई । दिल्ली, हिमाचल व उत्तराखंड से आए विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधियों की बैठक का आयोजन इड़ियाकोट भ्रातृ संगठन ने किया ।
उत्तराखंड एकता मंच के कॉर्डिनेटर अनूप बिष्ट, निशांत रौथाण , सलाहकार सुनील जोशी ने सराकारी दस्तावेजों, अदालती आदेशों एवं संविधान द्वारा यह तथ्य पेश किए की 5 वीं अनुसूची कोई नई मांग नहीं है l यह कानून उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र में सन 1931 में शेड्यूल डिस्ट्रिक्ट एक्ट 1874 लागू किया गया था । आजाद भारत में सभी जगह जहां जहां शेड्यूल डिस्ट्रिक्ट एक्ट 1874 को 5 वी अनुसूची एवं 6 अनुसूची में बदल दिया गया l लेकिन उत्तराखंड में 1972 में ये कानून हटा लिया गया । सन 1995 में पर्वतीय क्षेत्र के लोगों को मिलने वाले 6 फीसदी आरक्षण को उत्तरप्रदेश सरकार ने खत्म कर दिया था ।
मंच के कॉर्डिनेटर अनूप बिष्ट व निशांत रौथाण ने बताया कि धनबल व राजनीतिक सांठगांठ से जंगल, बजरी, रेत, जमीन का दोहन हो रहा है। स्थानीय आयोजक इड़ियाकोट भ्रातृ संगठन के अध्यक्ष राम प्रसाद शर्मा एवं महासचिव महेश चंद्र ध्यानी ने इस गंभीर चर्चा को विस्तार दिया।

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