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डॉ अनीश गर्ग की चंडीगढ़ साहित्य अकादमी द्वारा चयनित पुस्तक कलम से गुफ़्तगू का विमोचन प्रो रेनू विग ने किया


चण्डीगढ़ : आज पंजाब विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय कवि डॉ अनीश गर्ग की चंडीगढ़ साहित्य अकादमी द्वारा चयनित सर्वश्रेष्ठ पुस्तक कलम से गुफ़्तगू का विमोचन वॉइस चांसलर प्रोफेसर रेनू विग ने किया। इस अवसर वाइस चांसलर के पिता जे.डी चीमा, प्रसिद्ध समाजसेवी के के शारदा, वरिष्ठ साहित्यकार प्रेम विज, शायर अशोक भंडारी ‘नादिर’, कवि डा. विनोद शर्मा और कवियत्री डेज़ी बेदी एवं पंजाबी कवि दीपक चनारथल विशेष तौर पर उपस्थित रहे। पेशे से योग एवं प्राकृतिक चिकित्सक डॉ अनीश गर्ग ने बताया कि यह उनका तीसरा एकल काव्य संग्रह है जिसमें कविता के सभी नौ रस श्रृंगार,वीर,रौद्र,करुण इत्यादि पर आधारित कविताओं का समावेश है।

लगभग सभी रचनाएं तुकांत के साथ खुली कविताएं हैं।  डॉ अनीश ने कहा कि कविता लिखना इतना आसान नहीं है इसके लिए बहुत संवेदनशीलता एवं धैर्य की आवश्यकता है और इसी संदर्भ में अपनी एक कविता का उल्लेख करते हुए कहा कि साहित्य धरा पर प्रकट करने को प्राय: शब्दों को गुज़रना पड़ता है, प्रसूता भांति प्रसव वेदना से, निस्संदेह पोषित होते हैं संवेदना से। इस संग्रह में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और डिजिटल क्रांति के दुष्प्रभाव पर सारगर्भित पंक्तियां हैं कि इन मोबाइल/ लैपटॉप/टीवी के मुंह में दांत नहीं, पेट में आंत नहीं, फिर कैसे यह मोहल्ले की रौनकें के खा गया.. जब से आया इंटरनेट घर के बाशिंदे, खिड़कियां, रोशनदान सब खा गया.. , इस संग्रह में बेटियों से हो रहे दुराचार पर प्रखर तंज़ कसती हुई कविता है कि क्यों बेटियां महफूज़ नहीं अपने ही वतन में, क्यों गिद्धों की नजर है चिड़ियों के बदन पे, मां भारती के प्रति समर्पण करती नज़्म भी इसमें शामिल है-मैं बेशुमार अपना वतन चाहता हूं, तिरंगे में अपना कफ़न चाहता हूं, और समय के बाद जब मां-बाप चले जाते हैं तो उनकी बहुत याद रह रहकर आती है इस पर कवि हृदय से निकली पंक्तियां भी इसमें शामिल हैं-बहुत याद आती है वो घर की बूढ़ी निशानी..घर मेरा बनाने को किराए के घर में दफ़न कर दी जिसने ज़वानी।

उन्होंने बताया कि तुकबंदी और कविता लिखने का शौक बचपन से ही था परंतु इसकी शुरुआत एसडी कॉलेज चंडीगढ़ में हुई। यहां की हिंदी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर कुसुम शर्मा और हिंदी की लेक्चरर बेनू शर्मा के प्रोत्साहन पर कॉलेज की वार्षिक पत्रिका में लिखना शुरू किया। बस यहीं से लिखने का सिलसिला चल पड़ा। छोटी-छोटी गोष्ठियों से शुरू हुआ सफर धीरे-धीरे बड़े मंचों की तरफ ले गया। डॉ हरिओम पवार, सैयद नज़्म इकबाल, एहसान कुरैशी, अर्जुन सिसोदिया, अंंकिता तिवारी जैसे अंतर्राष्ट्रीय कवियों के साथ मंच साझा करने का अनुभव काम आ रहा है।
डॉ अनीश ने कहा कि मेरी हार्दिक इच्छा थी कि मेरे शहर के सबसे बड़े शिक्षण संस्थान के सर्वोच्च पदस्थ प्रबुद्ध के हाथों पुस्तक का विमोचन हो। प्र० रेनू विग ने अपने कर कमलों से पुस्तक का विमोचन करके मेरे मनोभाव को सार्थक कर दिया।

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