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सुख के लिए स्वच्छ एवं शांत मन ही सर्वोत्तम साधन : स्वामी संपूर्णानंद सरस्वती


 
महर्षि दयानंद सरस्वती का द्वितीय जन्म शताब्दी समारोह धूमधाम से संपन्न
सर्वश्रेष्ठ झांकियां प्रस्तुत करने के लिए शिक्षण संस्थानों और आर्य समाजों  को किया सम्मानित
चण्डीगढ़ : केंद्रीय आर्य सभा, चण्डीगढ़ द्वारा आयोजित महर्षि दयानंद सरस्वती का द्वितीय जन्म शताब्दी समारोह आर्य समाज सेक्टर 7-बी में धूमधाम से संपन्न हो गया है। आचार्य डॉ. सुश्रुत  सामश्रमी ने अपने उद्बोधन के दौरान  कहा कि  ईश्वर की उपासना करने वाला व्यक्ति किसी से नहीं डरता है। सूर्य के प्रकाश को सदा के लिए ढका नहीं जा सकता। ईश्वर प्राण देने वाला है। हमें प्राणों को हरण करने वाला नहीं बनना चाहिए। ईश्वर दुख विनाशक है, वह आनंदित करने वाला है।उन्होंने कहा कि मनुष्य को मांस का त्याग करना चाहिए।
स्वामी संपूर्णानंद सरस्वती जी ने अपने प्रवचन के दौरान कहा कि जो व्यक्ति दूसरों से द्वेष करता है उस पर प्रभु कभी कृपा नहीं करता है। ऐसा व्यक्ति परमपिता परमात्मा के आशीर्वाद से वंचित रहता है। जो अनुभूति से दूर है, वह हमेशा द्वेष करता है।  ऐसा व्यक्ति जीवन में कभी उन्नति नहीं कर पाएगा और उपलब्ध साधनों का सुख नहीं भोग पाता है। सुख के लिए स्वच्छ एवं शांत मन ही सर्वप्रथम साधन है।  धर्म के आचरण के विपरीत लोग धन इकट्ठा तो कर लेते हैं परंतु उसका सही भोग नहीं कर सकते हैं। स्रोत यदि मलिनता से भरा है तो उसका कोई लाभ नहीं है। शुद्ध पानी से भरा एक कप  विजातीय पानी से भरे टैंकर से ज्यादा महत्व रखता है।  ईमानदारी, सच्चाई, धर्माचरण, उत्कृष्ट श्रम करना उसके बाद जो अर्जित करना वह शुद्ध कप के जल के समान है। सब कुछ होते हुए भी द्वेष करने वाला व्यक्ति भिखारी जैसा जीवन व्यतीत है। यदि व्यक्ति अकर्मण्यता,  आलस्य, दुर्गुण,  दुर्व्यसनों से द्वेष  रखेगा तो वह जीवन में उन्नति कर पाएगा।  हम सफाई इसलिए करते हैं कि हमें गंदगी दिखाई देती है।  मन की मलिनता दिखने पर इसका प्रबंध करना चाहिए।  हमारे ऋषि- मुनियों, विद्वानों, तपस्वियों ने दर्पण का निर्माण किया है।  वह दर्पण स्वाध्याय है। स्वाध्याय से ही मन साफ हो सकता है। स्वाध्याय में मनुष्य शाश्वत शास्त्रों और परमात्मा की वाणी को पढ़ता है। जानते हुए कुकर्म करने वाला व्यक्ति आत्मघाती होता है। धनवान होकर कंजूस होना भी दुर्गति का कारण है।
श्री राम जी पर जब भी कोई विपत्ति आई तो भी वे मर्यादा से नहीं गिरे। महर्षि दयानंद सरस्वती जी को भी बड़े-बड़े प्रलोभन दिए गए परंतु कभी डगमगाए नहीं।  महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने सत्य और ईश्वर के लिए ही घर छोड़ा था। वेद भगवान की वाणी है।  हम श्री राम और श्री कृष्ण के उपासक व अनुयायी हैं जो व्यवहार भगवान से करते हैं उनसे नहीं करते।  श्री राम  जी भी उसी ईश्वर का ध्यान करते हैं। श्री कृष्ण जिसका ध्यान करते थे उसी का ध्यान हम सभी करते हैं ।  निश्चित व्यवहार ही व्यक्ति का कल्याण करता है।  ऐसे लोग मनोरोगी हैं जो अपने प्रदर्शन में लगे रहते हैं। वे हमेशा दुखी रहते हैं। सरलता, सादगी, सज्जनता, उदारता, दानशीलता, क्षमाशीलता आदि सद्गुण दिखाने चाहिए।  परमपिता की व्यवस्था में कोई परिवर्तन नहीं कर सकता। जो -जो चाहिए वैसा ही कार्य करना चाहिए। आर्य भजनोपदेशक पंडित नरेश दत्त ने भक्तिमय भजन पेश किए। केंद्रीय आर्य सभा की स्मारिका का विमोचन भी किया गया।
कार्यक्रम के दौरान डीएवी शिक्षण संस्थाओं में  उत्कृष्ट कार्य करने के लिए शिक्षकों को सम्मानित किया गया। शोभा यात्रा के दौरान सर्वश्रेष्ठ झांकियां प्रस्तुत करने के लिए शिक्षण संस्थानों और आर्य समाजों को प्रथम, द्वितीय, तृतीय और कंसोलेशन पुरस्कार से सम्मानित किया।  इस मौके पर हजारों की संख्या में आर्य समाजों के गणमान्य लोग, शिक्षण संस्थाओं के अध्यापकगण, प्रिंसिपल और बुद्धिजीवियों ने भाग लिया।  कार्यक्रम के पश्चात ऋषि लंगर भी वितरित किया गया।
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