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डॉ फुल्ल द्वारा तैयार हिमाचल का हिंदी साहित्य का इतिहास एक कमी को पूरा कर रहा है’


किसी भी भाषा में लेखक-साहित्यकार होना बड़ी बात है। फिर इतिहासकार होना और भी बड़े महत्व का विषय है। हिंदी भाषी, और अहिंदी भाषी प्रांतों में हिंदी साहित्य का इतिहास अलग अलग स्तर पर, अपने अपने स्वर में लिखा गया, या लिखा जा रहा है। इतिहासकार के सामने अनेक चुनौतियां रहती हैं। डॉ. सुशील कुमार फुल्ल ने हिमाचल के हिंदी साहित्य का इतिहास लिखकर एक कमी हो पूरा किया है। डा. मनमोहन सहगल इससे पूर्व, दो वृहद भागों में पंजाब के हिंदी साहित्य का इतिहास लगभग 1400 पृष्ठों में लिखकर कीर्ति अर्जित कर चुके हैं।
डा. सुशील कुमार फुल्ल स्वयं बड़े कथाकार, उपन्यासकार, संपादक, विद्वान और प्रोफेसर हैं। हिमाचल के हिंदी साहित्य के इतिहास में इन्होंने यहां की प्रवृत्तियां, सीमाएं और संभावनाएं बताते हुए 456 पृष्ठों में इस काम को संपन्न किया है। इतिहास लेखन की प्रासंगिकता के बाद डा. फुल्ल ने चौदह भागों में हिमाचल के हिंदी साहित्य के इतिहास को विधाओं के अनुसार, लेखकीय वरिष्ठता के आधार पर और यहां के लेखन की चुनौतियों को स्वीकारते हुए भी यह कार्य कर दिखाया है।
काल विभाजन, आदिकाल अथवा दरबारी काल, मध्यवर्ती काल, आधुनिक और फिर उत्तर आधुनिक काल में िनयोजन करके साहित्यिक विधाओं, और हिमाचल के इन विधागत लेखकों पर खुलकर कलम चलाई है। सर्वेक्षण, अनुसंधान, तुलनात्मक अध्ययन के सहारे, साहित्य का विभाजन उचित जान पड़ता है।
‘हिमाचल’ की परिभाषा में भी जो दुिवधा प्राय: सामने आती है, उसका निराकरण भी विद्वान इतिहासकार ने यहां कृति में न्याय करते हुए संपन्न किया है। प्राचीन हिमाचल, ऐतिहासिकता संयुक्त पंजाब, और फिर 1961 के बाद  हरियाणा, पंजाब से अलग हिमाचल की अवधारणा को इन्होंने बाकायदा जस्टिफाई किया है। सन 1900 ई. से 1947 ई. तक फिर 1947 से 200 ई. तक ही नहीं उतर आधुनिकता के नाम पर साल 2023 तक के लेखों, रचनाकारों का चुनाव करते हुए डॉ. फुल्ल ने हिमाचल में हिंदी साहित्य के योगदान को प्रमुखता के साथ रेखांकित करके दिखाया, बताया और समझाया है।
कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक, आलोचना, बाल साहित्य, पत्रकारिता, निबंध के बाद गद्य से इतर आपकी विधाओं के प्रसंग भी हिमाचल के रचनाकारों के कार्य के साथ अपने इतिहास में यहां बताए गए हैं। मुख्यधारा के लेखकों-लेखिकाओं ने हिंदी पत्रिकाओं में छपकर अपना स्थान बनाया है तो इनकी कतिपय कृतियां, इन सभी के समर्थ कार्य को सिद्ध करती, साक्षी कर रही हैं। नये और नवोदित रचनाकारों को खोजने, उनके नाम व काम गिनाने में डॉ. फुल्ल खासतौर पर सफल रहे हैं।
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