logo
Latest

हमें परस्पर द्वेष नहीं करना चाहिए: डॉ. सुश्रुत सामश्रमी


चण्डीगढ़ : महर्षि दयानंद सरस्वती जी के द्वितीय जन्म शताब्दी समारोह केंद्रीय आर्य सभा के तत्वाधान में आर्य समाज सेक्टर 7-बी में आयोजित किया गया है। आज के कार्यक्रम का शुभारंभ प्रातः कालीन यजुर्वेद यज्ञ से आरंभ हुआ जिसमें यज्ञ, भक्तिमय, भजन और प्रवचन हुए। सायंकालीन कार्यक्रम के दौरान सैकड़ो की संख्या में लोगों ने भाग लिया।
आचार्य (डॉ) सुश्रुत सामश्रमी ने प्रवचन के दौरान वेद मन्त्र के अभिप्राय को स्पष्ट करते हुए बताया कि हमें परस्पर द्वेष नहीं करना चाहिये। विशेषकर अपने समीपस्थों से द्वेष से बचना चाहिये। महाभारत के उदाहरण द्वारा समझाया कि भाइयों के द्वेष से कितनी बड़ी हानि हुई। मनुष्य को अनावश्यक वासना से बचना चाहिये। आजन्म ब्रह्मचारी महर्षि दयानन्द , पितामह भीष्म और महाबली हनुमान् के उदाहरणों से बताया कि ब्रह्मचर्य का पालन मनुष्य को बलवान् और बुद्धिमान् बनाता है। कम्पनियां अपना सामान बेचने के  लिये स्त्री-पुरुष के बीच आकर्षण को बढ़ाने हेतु भड़काऊ और अर्धनग्न चित्रों से वासना को परोस रही हैं जिससे हमारी सन्तानें उत्तरोत्तर शारीरिक और मानसिक तौर पर अधिक दुर्बल और अल्पायु हो रही हैं। यदि प्रसन्नता केवल आइफोन, आलीशान मकानों और गाड़ियों से मिल पाती या सोने, हीरे, जवाहरातों से खरीदी जा सकती तो सभी धनपति सुखी दिखाई देते परन्तु ऐसा नहीं है। झुग्गी बस्तियों के बाहर मैले कुचैले कपड़ों में खेलने वाले बच्चे आपको सुखी मिल जाएंगे और ऊंची अट्टालिकाओं में रहने वाले दुखी मिल जाएंगे। इसलिये हमारे ऋषियों ने सुख का सूत्र दिया जो संतोषी है, वही सुखी है। इससे पूर्व आर्य भजनोपदेशक पंडित दिनेश दत्त ने अपने मधुर भजनों- धीरे-धीरे बीत रही रात, ना वादा ना दावा, न शंकर बोलता और यज्ञोपवीत लेकर खुद को निहारना है जीवन सुधारने का संकल्प धारणा है आदि मधुर भजनों से उपस्थित लोगों को आत्मविभोर कर दिया।
TAGS: No tags found

Video Ad

Ads


Top