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देवभूमि में यात्रियों के लिए जरूरी हो मर्यादा का पाठ।

ऋषिकेश/आशीष लखेड़ा (उत्तराखंडी)

सुनने में आया है कि उत्तराखण्ड में इस कोरोना काल में कांवड़ यात्रा को कुछ तय शर्तों पर हरी झण्डी दी जा सकती है। कांवड़ यात्रा यानि श्रद्धा और भक्ति का दूसरा नाम। जो कि सैकड़ों वर्ष पुरानी हमारी धार्मिक संस्कृति का अंग है। हर वर्ष देश के कोने-कोने से शिव भक्त नीलकण्ठ यात्रा का हिस्सा बनते हैं।

लेकिन कोरोना के चलते पिछले वर्ष भक्तों को निराश होना पड़ेगा। जिसका प्रभाव यहाँ के व्यापार पर भी खासा दिखाई दिया। नीलकण्ठ क्षेत्र में स्वरोजगार पर निर्भर लोगों के लिए तो यात्रा सीजन ही एक मात्र आय का साधन है।
लेकिन इन सब के अलावा हाल ही में उत्तराखण्ड में पहुंचे यात्रियों ने जो तस्वीर उत्तराखण्डवासियों के जहन में उकेरी है, और पिछले लम्बे समय से कांवड़ यात्रा के दौरान जो दिक्कतें स्थानीय लोग खासकर हमारी माताएं बहनें जो झेलते आए हैं, उसने उत्तराखण्ड में आने वाले यात्रियों के विषय में सोचने पर मजबूर कर दिया है। फेसबुक पर हाल ही में हरिद्वार और ऋषिकेश में गंगा तट पर हरियाणा के कुछ लोगों द्वारा हुक्का पीने की तस्वीरें सामने आई तो स्थानीय लोगों ने खूब विरोध किया और कानूनन कार्यवाही भी की गई। कांवड़ यात्रा में
यात्रियों के भेष में हुड़दंगियों व असामाजिक तत्व यहाँ केवल अपनी मौज मस्ती के लिए आते हैं। जिन्हें धर्म व भक्ति से कोई लेना देना नहीं और यह बात जानते सब हैं लेकिन इस पर रोक लगाने वाला कोई नहीं। हुड़दंगी नीलकंठ दर्शन के नाम पर यहाँ आते हैं और स्थानीय लोगों के साथ बदतमीजी करते दिखते हैं। कभी सड़क किनारे नशीले पदार्थों को सेवन करते नजर आते हैं तो कभी माँ गंगा के जल में कांवड़ फेंकते व बाइकें धोते नजर आते हैं। स्थानीय अखबारों में छपी खबरें व इंटरनेट पर जारी तस्वीरें इस बात की गवाह हैं। सबसे बड़ी बात डाक कांवड़ के नाम पर डीजे पर तेज आवाज में गाने बजा कर शोर मचाते हुए चलते हैं। कांवड़ के दिनों में स्थानीय बालिकाओं का घर से बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है। मनचले कांवड़िए ट्यूशन से घर लौटती छात्राओं पर फब्तियां कसने से नहीं चूकते। लेकिन कोई इसका विरोध इसलिए नहीं करना चाहता क्योंकि इसे धार्मिक भावनाओं का चोला पहना दिया जाता है। इनके हुड़दंग से पुलिस प्रशासन अलग परेशान है। यह सब झेलने के बाद बारी आती है बिना साइलेंसर कान फोड़ आवाज के सड़कों पर दौड़ती बाइकों की जिस पर चार-चार लोग लदे हुए होते हैं। सामान्य दिनों में पुलिस स्थानीय लोगों की हर दस कदम पर बाइक रूकवा कर चालान करती दिखती है। लेकिन कांवड़ यात्रा में इस हुड़दंग पर पुलिस भी चुप्पी बना लेती है। बिना साइलेंसर की चार-चार लोगों को लिए दौड़ती उनकी बाइकों के कोई चालान नहीं किए जाते। यह धार्मिक अंधता है या फिर राजनीति के भीतर वोट बैंक की मजबूरी जो इस तरह के हुड़दंग को उत्तराखण्डवासियों को झेलना पड़ता है।


 



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