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एक राष्ट्रवादी व्यक्तित्व शंभू प्रसाद धस्माना ।

इलाहाबाद में स्नातक शिक्षा ग्रहण करने के दौरान शंभू प्रसाद धस्माना की कविताओं को एक कार्यक्रम में सुनने के बाद हिंदी जगत के प्रसिद्ध गीतकार प्रदीप इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने इस लेखन की यात्रा को जारी रखने के लिऐ शंभू को प्रोत्साहित किया । एक प्रखर राष्ट्रवादी कवि, प्रकृति प्रेमी,देशभक्त और श्रृंगार रस की कविताओं के रचनाकार संभू प्रसाद बहुत संवेदनशील व्यक्ति थे। 15 अगस्त 1934 ग्रामतोली,बदलपुर में विख्यात समाज सेवी, प्रयाग दत्त (लखपति साहब) के घर पर उनका जन्म हुआ। उनके चाचा प्रख्यात योगगुरु स्वामिराम (किशोरीलाल धस्माना) थे ।शंभू प्रसाद धस्माना

प्राथमिक शिक्षा दुधारखाल, पौड़ी मिशन स्कूल, जयहरीखाल से इंटर एयर इलाहाबाद से बी.ए. परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद भारत सरकार के शिक्षा विभाग की एक विशेष योजना के तहत उन्हें शिलोंग में अध्यापन करने का अवसर मिला। एक मेधावी छात्र के साथ ही शंभू प्रसाद के भीतर कला, संस्कृति और दर्शन का व्यापक प्रभाव था। इसके अतिरिक्त बांसुरी वादन और संगीत में गहरी रुची के कारण इनका संपर्क राष्ट्रीय रचनाकारों से हो गया था। शिलांग और अरुणाचल में अध्यापन कार्य के दौरान 1962 में चीन ने भारत पर जब आक्रमण किया तब संभी प्रसाद के भीतर देशभक्ति की ज्वाला भड़क उठी और उन्होंने सेना में जाने का निर्णय किया। भारतीय सेना में इन्हें विशेष कमीशन के माध्यम से कैप्टन का दर्जा दिया गया। इसके बाद उन्होंने सीमावर्ती क्षेत्र में अपने शौर्य और पराक्रम का परिचय दिया।युद्ध समाप्ति पर इनका ट्रांसफर चमोली कर दिया गया था।

जोशीमठ में रहकर उन्होंने अनेक राष्ट्रवादी कविताएं भी लिखी। एक दिन 22 मार्च,1926 को जब ये जोशीमठ होकर पौड़ी अपने गांव जा रहे थे तब कुछ देर पौड़ी में हमारे घर रुक कर शंभू प्रसाद का मेरे पिताजी, दया सागर धस्माना से मिलना हुआ। पौड़ी,कांसखेत मोटरमार्ग पर बस दुर्घटना ग्रस्त हो गई जिसमें संभू प्रसाद के साथ सोलह व्यक्ति अकाल मृत्यु को प्राप्त हुए। पुलिस द्वारा इसकी सूचना मेरे पिताजी को भी दी गई क्योंकि हमारा घर पौड़ी पुलिस कार्यालय के निकट था । तब संचार साधनों की कमी के कारण इनके परिजनों को सूचना देना संभव नहीं हुआ । तब मेरे पिता द्वारा अगले दिन अलकनंदा श्रीनगर के तट पर इनका अंतिम संस्कार किया गया । तब तक ग्राम तोली से इनके परिजन भी पहुंच चुके थे।  इस तरह शंभू प्रसाद के असमय निधन से देश ने जहां एक राष्ट्रीयवादी सेना अधिकारी खोया वहीं दूसरी ओर उत्तराखंड ने एक संवेदनशील कवि,चित्रकार और संगीतज्ञ भी खोया।  शंभू प्रसाद की कविताओं का प्रकाशन उनके बड़े पुत्र अशोक धस्माना द्वारा अहमदाबाद, गुजरात से’ इतनी सी बीतिया’ पुस्तक के रूप में किया गया। स्वर्गीय शंभू प्रसाद जी के पिता लखपति जी, जी.एम.ओ.यू. ट्रांसपोर्ट कंपनी के 1939 में संस्थापक सदस्य रहे । अनेक सामाजिक एवं शिक्षा के क्षेत्र में आर्थिक सहयोग देकर मेधावी बच्चों को भी प्रोत्साहित किया । इसके अतिरिक्त उन्होंने गढ़वाल में डोला पालकी आंदोलन में महात्मा गांधी के निर्देश पर इस समस्या के समाधान के लिए अपना विशेष योगदान दिया। कोटद्वार से प्रकाशित कर्मभूमि को भी उन्होंने आर्थिक सहयोग देकर सहकारिता के आधार पर संचालित किया। इन दोनो विभूतियों के फोटो पाठकों के लिए साझा कर रहा हूं।



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