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हरेला त्यौहार क्यों मनाया जाता हैं ?

हरेला पर्व परिचय : हरेला पर्व प्रकृति और मनुष्य जीवन के लिए एक महत्वपूर्ण योगदान का मूल आधार स्तंभ है, हरेला पर्व प्राकृतिक सौंदर्य सम्पदा और जीवन मे हरियाली व जीवन स्तर उन्नतिशील व प्रगतिशील बनाए रखने का प्रयास है , हम राष्ट्रीय गीत वन्देमातरम मे भी भारत माता की वन्दना करते हुए कहते है- सॅसय श्यामलाम मातरम वन्देमातरम -अर्थात यह धरती माता हरी भरी रहे, हरेला पर्व मुख्य रूप से देव भूमि उत्तराखंड व आसपास के राज्यो के साथ साथ पूरे देश मे अलग अलग ढंग व नामो से मनाया जाता है लेकिन इस का मुख्य उद्देश्य प्रकृति संरक्षण व विकास व सुधार मानवीय जीवन स्तर उन्नत बनाकर देश को हरा भरा करना है ,इस पर्व पर विशेष रूप से प्रकृति की पूजा व वृक्षारोपण किया जाता है, क्योंकि प्रकृति हमे शुध्द जीवनदायिनी वायु देती है और प्रदुषण मुक्त वातावरण तैयार करती है। हम प्रकृति को माता के रूप मे पूजते है जो तुलसी ,पीपल,बरगद, आम, केला आदि अनेकानेक वृक्षो को हम पवित्र मानकर पूजा करी जाती है।

ऐसी मान्यता है हरेला पर्व को लेकर : उत्तराखंड में सावन की शुरुआत हरेला पर्व से होती है, इस दिन शिव की पूजा के साथ हरेला काटने की परंपरा है। यह भी मान्यता है कि जिसका हरेला जितना बडा होगा उसे कृषि मे उतना ही फायदा होगा। वैसे तो हरेला घर-घर में बोया जाता है, लेकिन किसी-किसी गांव में हरेला पर्व को सामूहिक रुप से स्थानीय ग्राम देवता मंदिर में भी मनाया जाता हैं गाँव के लोग द्वारा मिलकर मंदिर में हरेला बोई जाती हैं|हरेला उत्तराखंड का लोकपर्व है, जो कर्क संक्रांति के दिन मनाया जाता है. हरेला पर्व साल में तीन बार मनाया जाता है, पहला चैत्र मास, दूसरा सावन मास और तीसरा आश्विन महीने में।

हरेला

श्रावण मास में मनाया जाने वाला हरेला क्यों खास हैं? हरेला का ​अर्थ हरियाली से है । यह पर्व हरियाली और नई ऋतु के शुरू होने का सूचक है। उत्तराखंड में हरेला पर्व से सावन शुरू होता है। सावन का महीना हिन्दू धर्म में पवित्र महीनों में से एक माना जाता है। यह महिना भगवान शिव को समर्पित है। और भगवान शिव को यह महीना अत्यधिक पसंद भी है। इसीलिए यह त्यौहार भी भगवान शिव परिवार को समर्पित है। और उत्तराखंड की भूमि को तो शिव भूमि (देवभूमि) ही कहा जाता है। इस पर्व को शिव पार्वती के विवाह के रूप में भी मनाया जाता है। हरेला पर्व से 9 दिन पहले टोकरी में पांच या सात प्रकार के अनाज बोए जाते हैं और हरेला के दिन इसे काटा जाता है।

वृक्ष का मानव जीवन में महत्व-: वृक्ष हमारे जीवन मे जन्म से लेकर हर संस्कार व पर्व से लेकर अंतिम संस्कार संपन्न होने तक वृक्षो पर निर्भर रहना पडता है, जन्म समय पर पालना ( झूला) शुद्धि करण पर हवन-पूजन लकड़ी, कुर्सी आसन (चौकी) टेबल, मेज, पंलग, बैड, सौफा , तंदूर पर लकड़ी, नाव व जहाज निर्माण आदि मे घर निर्माण कार्य चौखट, दरवाजा, सजावट कार्य से लेकर बूढापे का सहायक लाठी , पुलिस प्रशासन के लिए लाठी , पशुपालन कार्य के लिए लकड़ी ( बांधने के लिए खूटा) और अंतिम संस्कार संपन्न करने पर लकड़ी ही आवश्यक है और इस सब के लिए लकडिय़ों की जरूरत पेड़ो से पूरी होती है । नारियल एक ऐसा महत्वपूर्ण वृक्ष है जिसका पत्ते सजावट से लेकर सफाई अभियान के लिए झाड़ू और फल से नारियल पानी और कच्चा नारियल सूखा नारियल व नारियल तेल व नारियल पाऊडर से लेकर भोजन मे नारियल तेल आदि बहुत प्रकार से प्रयोग होता है , अनेकानेक औषधीय गुणो वाले फूलो फलो और सजावट के लिए वृक्षारोपण ही जरूरी है इसलिए वृक्षारोपण करना , यह हमारा मूल धर्म है।
वृक्ष संरक्षण सबकी नैतिक जिम्मेदारी-: हम इस पर्व को प्राकृतिक सौंदर्य व संरक्षण व निर्माण से जोड़कर काम करना चाहिए , इस पर्व से प्रतिवर्ष वृक्षारोपण सप्ताह या पखवाड़ा मनाकर और अधिक बेहतरीन काम करना चाहिए, सरकार भी इस पर जोर देकर काम कर बेहतरीन काम करे और जनजागरूकता अभियान चलाए। हरियाली को बढ़ाकर प्रकृति संरक्षण करे हम,आओ मिलकर इस धरती को हरा भरा करे हम |

डा०अनिरुद्ध उनियाल , संस्थापक व राष्ट्रीय अध्यक्ष
नव्य भारत फाउंडेशन (एनबीएफ भारत)

Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है । यहां यह बताना जरूरी है कि uttarakhandlive.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है । किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें।

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