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गंगा सम्मोहन में खिंची चली आई दुनिया की योगनियां।


टिहरी की घाटी में विदेशी साधकों का विशेष योग सम्मेलन, गंगा तट पर जल साधना का अद्भुत अनुभव।
उत्तराखण्ड लाइव | ऋषिकेश
टिहरी गढ़वाल के सिंगथाली गांव के पास इन दिनों एक अनोखा दृश्य देखने को मिला। दुनिया के कई देशों—ब्रिटेन, अमेरिका, इंडोनेशिया, ईरान, ताइवान, चीन और यहां तक कि पाकिस्तान—से आए योग साधक गंगा तट पर जल साधना में लीन दिखे। सुबह की पहली किरण के साथ वे तांबे और चांदी के पात्रों से सूर्य को अर्ध्य देते और लंबे समय तक ध्यान में डूबे रहते। गंगा की शांत लहरों का संगीत साधना को और गहरा कर देता था।

विश्व प्रसिद्ध योग गुरु हिमालय सिद्ध अक्षर की मौजूदगी ने साधकों में और उत्साह भर दिया। गिनीज बुक में कई योग रिकॉर्ड दर्ज करा चुके अक्षर की छत्रछाया में विदेशी योगी-योगनियां योग दर्शन, प्राणायाम, जल साधना और ध्यान की गहराइयों से परिचित हुए। उनके साथ एक ब्रिटिश साधक लगातार रहते, जिसे देखकर विदेशी समूह में और श्रद्धा बढ़ती गई। टिहरी की इस घाटी में योग का यह सम्मेलन एक सांस्कृतिक संगम बन गया। यहां कॉरपोरेट अधिकारी, नवविवाहित जोड़ा, परिवार, प्रेमी युगल, एक आत्मनिर्भर युवती और सत्तर वर्षीय चीनी साधिका तक शामिल रही। वे न केवल योग में डूबे बल्कि उत्तराखंड के खानपान और संस्कृति से भी जुड़े। मंडवे का डोसा, अरसे, स्वाली और आलू-मूली की थिचौंडी उनके लिए खास आकर्षण रहे।

हिमालय सिद्ध अक्षर बताते हैं कि संयुक्त राष्ट्र द्वारा योग को मान्यता मिलने के बाद दुनिया भर में इसकी स्वीकृति तेजी से बढ़ी है। आधुनिक चिकित्सा की तुलना में लोग मन और शरीर के संतुलन के लिए योग की ओर लौट रहे हैं। यही कारण है कि मशीनरी जीवन से ऊबे लोग भारत में सुकून तलाशने आते हैं। साधकों ने देवप्रयाग में संगम पर जल साधना का अनूठा अनुभव भी लिया, जो उन्हें लंबे समय तक याद रहेगा।

सिंगथाली का प्राकृतिक वातावरण, गंगा का सानिध्य और संध्याकालीन आरती का दिव्य दृश्य विदेशी साधकों को मंत्रमुग्ध कर गया। घाट की गहराई में जल्दी ढलने वाली शाम और कई ज्योतियों वाली दीपमाला उनके लिए किसी पर्व से कम नहीं थी। रात्रि सत्रों में बौद्धिक विमर्श और दिन में योग जिज्ञासाओं का समाधान इस योग पर्व को और खास बनाता गया।

अक्षर कहते हैं कि दुनिया भर से लाखों लोग योग की जन्मभूमि भारत से सीखने आते हैं। यह विडंबना ही है कि जिस उपभोक्तावादी संस्कृति को विदेशों में लोग त्याग रहे हैं, उसका अंधा अनुसरण भारत में बढ़ रहा है। योग इस भ्रमजाल से बाहर निकलकर स्वस्थ और शांत जीवन का मार्ग दिखाता है।

यह योग रिट्रीट न केवल साधकों के लिए अध्यात्मिक अनुभव था बल्कि भारत की संस्कृति, प्रकृति और योग परंपरा का जीवंत परिचय भी। यहां से लौटकर ये साधक अपने-अपने देशों में भारत के सांस्कृतिक दूत बनकर जाएंगे।

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