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सस्टेनेबल डेवलपमेंट पर ग्रास रूट लेवल पर काम करना ही होगा : डॉ. मुरली मनोहर जोशी


क्रिड, चण्डीगढ़ द्वारा आयोजित “समाज, पर्यावरण और विकासशील विकल्प : उभरते मुद्दे और विकल्प” विषय पर तीन-दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन शुरू

चण्डीगढ़ : “समाज, पर्यावरण और विकासशील विकल्प : उभरते मुद्दे और विकल्प” विषय पर एक तीन-दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन सेंटर फॉर रिसर्च इन रूरल एंड इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट (क्रिड), चण्डीगढ़ द्वारा किया जा रहा है जिसमें आज पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने ऑनलाइन अध्यक्षीय भाषण देते हुए चण्डीगढ़ में इस प्रकार के आयोजन की प्रशंसा की व कहा कि पर्यावरण एवं सस्टेनेबल डेवलपमेंट को लेकर ये आयोजन तभी सफल होगा जब इस पर ग्रास रूट लेवल पर काम किया जाए। उन्होंने कहा कि ये मुद्दा सिर्फ भारत का ही नहीं है बल्कि पूरे विश्व से जुड़ा हुआ है। ग्लोबल वार्मिंग अपने चरम तक पहुँचने को है, बर्फ से हमेशा लकदक पहाड़ अब नंगे दिखने लगे हैं, समुन्द्र भी बुरी तरफ से मानवों की जरूरतों को पूरा करते करते प्रदूषित हो रहे हैं। इसलिए भावी पीढ़ियों के सुरक्षित व निष्कंटक जीवन के लिए जमीनी और युद्ध स्तर पर काम करना होगा।

पंजाब स्टेट ह्यूमन राइट्स कमीशन के चेयरमैन जस्टिस (से.नि.) संत प्रकाश  ने अपने संबोधन में कहा कि हम जिस पर्यावरण में रहते हैं उसके लिए जिम्मेदार होने के महत्व को ध्यान में रखते हुए सस्टेनेबल डेवलपमेंट की दिशा में अथक काम करना होगा। सस्टेनेबल डेवलपमेंट का मूल विचार कल की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए आज के लिए काम करना है। पूर्व सांसद एवं भारत सरकार के एडीशनल सॉलिसिटर जनरल सत्यपाल जैन ने भी सस्टेनेबल डेवलपमेंट का महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि यह आने वाली पीढ़ियों की जरूरतों से समझौता किए बिना वर्तमान पीढ़ियों की जरूरतों को पूरा करता है। सस्टेनेबल डेवलपमेंट हमें अपने संसाधनों का सही तरीके से उपयोग करना सिखाता है।

इस अवसर पर क्रिड के डायरेक्टर (कार्यकारी) डॉ. बिंदु दुग्गल स्वागतकर्ता थे। कार्यक्रम के संयोजक डॉ. मनोज कुमार तेवतिया ने बताया कि यह अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन चण्डीगढ़ क्लाइमेट मीट (तीसरी श्रृंखला) का हिस्सा है

सम्मेलन का आयोजन भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएसएसआर), नई दिल्ली, चण्डीगढ़  क्षेत्र नवाचार और ज्ञान समूह (सीआरआईके), पंजाब विश्वविद्यालय, चण्डीगढ़, राष्ट्रीय नगर विषयक अनुसंधान संस्थान (एनआईयूए), नई दिल्ली और पंजाब राज्य मानव अधिकार आयोग (पीएसएचआरसी) की वित्तीय सहायता के साथ किया जा रहा है।

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