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चिंता के बजाय परमात्मा का चिंतन करें — नृसिंह पीठाधीश्वर स्वामी रसिक महाराज


सिद्ध बाबा बालकनाथ मंदिर सभा सैक्टर 31की ओर से ज्ञान की पयस्विनी श्रीम‌द्भागवत पंचदिवसीय कथा ज्ञानयज्ञ के चौथे दिवस में नृसिंह पीठाधीश्वर स्वामी रसिक महाराज ने प्रहलाद प्रसंग के माध्यम से भक्त और भगवान के संबंध का मार्मिक चित्रण किया। प्रहलाद के पिता हिरण्यकश्यिप के द्वारा उसे पहाड़ की चोटी से नीचे फेंका गया, विषपान करवाया, मस्त हाथी के आगे डाला गया। परंतु भक्त प्रहलाद भक्तिमार्ग से विचलित न हुए। परंतु भक्त प्रहलाद भक्तिमार्ग से विचलित न हुए। विपदा या मुसीबत भक्त के जीवन को निखारने के लिए आते हैं। जिस प्रकार से सोना आग की भट्टी में तप कर ही कुंदन बनता है। ठीक वैसे ही भक्ति की चमक विपदाओं के आने पर ही देदीप्यमान होती है। दूसरी बात यह कि जो भीतर की शक्ति को नहीं जानता, वह इनसे घबराते हैं। आज समाज में अनेक किताबें है जो विपरीत परिस्थितियों में साहस न छोड़ने की प्रेरणा देती है। पर उन में लिखे शब्द हमारी बारी में ही स्थान पाते हैं, कर्म में नहीं। क्योंकि जिस आत्मविश्वास की खोज हम कर रहे हैं वह आत्मा को जानने पर ही प्राप्त होगा। कहा भी गया है कि पृथ्वी पर सशक्त हथियार आत्म जागृति है। सद्गुरू की शरण में जाने पर आत्मज्ञान को प्राप्त करने के बाद ही हमारा स्वयं पर और परमात्मा पर विश्वास स्थिर होता है। फिर इस साहस से उपजता है अदम्य साहस जो हमें असंभव को संभव करने की शक्ति देता है। इसलिये जिस भी सफलता को हम प्राप्त करना चाहते हैं, उसका आधर है आत्मविश्वास, वह केवल आत्मज्ञान से ही संभव है। तदुपरांत होलिका प्रहलाद को क्षति पहुंचाने का प्रयास करती है।

अग्नि में बैठे भक्त की प्रभु ने रक्षा की। होलिका जल कर राख हो गयी। आज भी होलिका दहन का प्रचलन है। होली जिन रंगों से खेली जाती है। वे रंग तो पानी से धुल जाते हैं परंतु जो ईश्वर दर्शन कर भीतरी जगत में भक्ति के रंगों से होली मनाता है- वह विचित्र है। क्योंकि वे रंग और प्रगाढ़ हो जाते हैं। जन्मों-जन्म के लिये भगवान से संबंध स्थापित होता है। होली उत्सव कथा में मनाया गया। उसके पश्चात् भक्त की रक्षा करने प्रभ स्तम्भ में से प्रकट होते हैं। नरसिंह अवतार धरण कर उन्होने अधर्म और अन्याय को समाप्त कर सत्य की पताका को फहराया।चिंता के बजाय परमात्मा का चिंतन करें .

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