बच्चों के रूझान के आधार पर हो करियर का चुनाव।
शिवानी कोटियाल/उत्तराखंड लाइव: अक्सर एक समय पर अधिकतर छात्रों को पढ़ाई से जी चुराते हुए देखा जाता है। स्कूल कॉलेजों में जिस दौर में उन्हें गहन पढ़ाई से गुजरना होता है उसी दौर में उनके मन के भीतर खेलने—कूदने व मौज मस्ती करने का भी मन होता है। शायद उन्हें लगता है कि इस वक्त पढ़ाई नहीं बल्कि खेलना कूदना या सैर सपाटा करना अधिक जरूरी है। यह भी नहीं है कि वे पढ़ाई नहीं करना चाहते या करियर नहीं बनाना चाहते। लेकिन उम्र के इस पड़ाव में मौज मस्ती उनके दिलो दिमाग पर हावी होती है। यानी वे भटकाव की स्थिति में होते हैं। ऐसे में सवाल यह है कि इस उम्र में छात्रों को कैसे गाइड किया जाए, कि उनके मन की बात भी रह जाए और करियर भी बने। यानी बीच का वो रास्ता जिससे छात्र और उसके माता—पिता दोनों ही संतुष्ट हों।
क्या है असल समस्या और इसका बुरा प्रभाव — मुझे लगता है कि जिसे माता—पिता या गुरूजन केवल करियर समझते हैं वह दरअसल छात्र के लिए नौकरी पा लेने का जरिया मात्र नहीं बल्कि उसका पूरा जीवन है। जिसमें वह खुशियों के, मौज मस्ती के सभी रंग भरते हुए लक्ष्य प्राप्त कर लेना चाहता है।
कह सकते हैं कि अधिकतर छात्र इसी मानसिक तनाव से गुजरते हैं कि वे किसकी सुनें अपने मन की या माता—पिता व गुरूजन की। ऐसे में कई बार माता—पिता और बच्चों के बीच तनाव बन जाता है। जिसके चलते बच्चे माता—पिता से दूर होने लगते हैं। उन्हें लगता है कि माता—पिता उन्हें नहीं समझ रहे और माता—पिता को लगता है कि बच्चा उन्हें नहीं समझ रहा।
आज कई विभागों और विषय क्षेत्रों में हम देखते हैं कि लोग बड़े—बड़े पदों पर भी हैं लेकिन उसे जॉब से खुश नहीं हैं। समाज के डर और माता—पिता के दबाव में वे डॉक्टर तो बन गए लेकिन उस जॉब में उनका दम घुटता है क्योंकि उसे हमेशा से एक संगीतकार बनना था। लेकिन दबाव में डॉक्टर बन गया। कई बार माता—पिता अपने बच्चों को उनकी चाह के करियर में इसलिए झोंक देना चाहते हैं क्योंकि पड़ोस के बच्चे ने उसमें बेहतर करियर बनाया है। लेकिन वे यह भूल गए कि उनके बच्चे की खुशी और मन उसी विषय क्षेत्र में रहा है। इसीलिए वे आज कामयाब हैं।
यह हो सकता है इस बात का हल:— एक छात्र के जीवन को खुशियों से भर देने में सबसे बड़ा किरदार माता—पिता और गुरूजनों का हो सकता है। इसके लिए जरूरी है कि बच्चे को सही दिशा देना। समाज के आइने से नहीं बल्कि अपने बच्चों के भीतर मौजूद खूबियों को जानकर। उन्हें उसी विषय क्षेत्र में जाने के लिए प्रेरित करना होगा जिसमें उसे खुशी मिलती हो और गुरू का काम हो कि छात्र के भीतर की उस काबीलियत को पहचान और तरास कर उसे उस ओर अग्रसर करना। माता—पिता को भी बच्चों से मात्र अच्छे करियर की उम्मीद रखना या बात—बात पर समाज का डर दिखा कर उस पर दबाव नहीं बनाना चाहिए। इस उम्र में बच्चों को प्यार औ उन्हें समझने की जरूरत होती है। क्योंकि इस उम्र में ही वे अपने करियर, समाज, माता—पिता, नाते रिश्तेदार सभी की अकांक्षाओं और कथनों के दबाव में रहते हैं। लिहाजा बेहद जरूरी है उन्हें समझना और उनके भीतर की काबीलियत को समझ कर सही दिशा देने की।