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मां-बाप में बसते हैं सिया राम, इनसे मुंह मोड़ने से राम ना मिलेंगे…


संस्कार भारती व बृहस्पति कला केंद्र ने किया साहित्य सरिता का आयोजन

चण्डीगढ़ : आज संस्कार भारती, चण्डीगढ़ एवं बृहस्पति कला केंद्र के साझा तत्वावधान में मासिक गोष्ठी की कड़ी में ‘काव्य सरिता’ का आयोजन किया गया। संस्कार भारती के मार्गदर्शक प्रोफेसर सौभाग्य वर्धन, प्रधान यशपाल भारती एवं मंत्री मनोज सिंह ने दीप प्रज्वलित करके कार्यक्रम का श्रीगणेश किया। संस्कार भारती के विधा प्रमुख एवं राष्ट्रीय कवि डॉ. अनीश गर्ग ने गोष्ठी के आरंभ में आधुनिक परिवेश में स्वार्थवश परिवारों के हो रहे विघटन पर तंज़ कसते हुए कहा, “सुन! घर तोड़ने से राम ना मिलेंगे..परिवार छोड़ने से राम ना मिलेंगे..मां बाप में बसते हैं सिया राम, इनसे मुंह मोड़ने से राम ना मिलेंगे..”। इन पंक्तियों को सुनते ही सभागार तालियों से गूंज उठा। इसके बाद डॉ. त्रिप्त मेहता ने पढ़ा, “यूँ तो भंवरा सदियों से फिदा है शमा पर,चल आज उस भ्रमर का भी मोह भंग करें”।

प्रसिद्ध कवियत्री नीलम त्रिखा ने अपने अंदाज़ में कहा,”अपना कर्तव्य जानकर हम यह आह्वान करते हैं, आओ मतदान करते हैं…आओ राष्ट्र के पर्व का यह अभियान करते हैं, चलो मतदान करते हैं.अपना कर्तव्य जानकर हम यह आह्वान करते हैं, आओ मतदान करते हैं…अपना कर्तव्य जानकर हम यह आह्वान करते हैं, आओ मतदान करते हैं…आओ मतदान करते हैं…। ऊषा गर्ग ने कहा,”कारगिल युद्ध के बलिदानी, आप्रेशन विजय हुआ लासानी”। गुरमीत गोल्डी ने कहा,”कहानी कहेंगे लोग एक दिन तुम्हारी एक बार खुद पे यक़ीन करो तो सही”। वंदना भारती ने कुछ यूं कहा,”हे कविता तुम आओगी क्या! शब्दों का श्रृंगार किये भावों का हार लिये पन्नों पर सज जाओगी क्या”, श्रोताओं की मांग पर डॉ. अनीश गर्ग ने पढ़ा,” कैसे कह दूं कि हम अकेले हैं…छोटे से घर में ज़ख्मों के रेले हैं….खतों का शोर है हिज़्र की रातों में, मेरी चौखट पे रंज ओ गम के मेले हैं…”। कवि राजेश आत्रेय ने अध्यक्षीय समीक्षा उपरांत अपनी पंक्तियां रखते हुए कहा,” मोहब्बत का नगमा हर दिल गए नहीं सकता धड़कनों की तान है कोई मजाक है क्या”। इस कार्यक्रम में सुरजीत धीर, आशा शर्मा, विशाल गर्ग, सरबजीत सिंह लहरी विशेष तौर पर उपस्थित रहे।

 

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