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30 वी पुण्य तिथि पर श्रद्धा सुमन !


   Mr. D.M Lakhera

18 मई 1993 को उस अदृश्य शक्ति ने हमें पिता विहीन बना दिया जिसने जन्म और मृत्यु का अधिकार मनुष्य की लाख कोशिशों के बाद भी अपने पास रखा है!
दिवंगत पवित्र आत्मा स्व. श्री सी एम लखेड़ा की  30 वी पुण्यतिथि  के अवसर पर उनके संघर्ष के दिनों का भावपूर्ण स्मरण कर शब्दों की श्रंद्धाजलि देने का समय भी !पौड़ी गढ़वाल के बिचला बदलपुर के कलिगाड गावँ में स्व. गणेश दत्त लखेड़ा के यहाँ शोकिनी नाम से गांव में जाने जानी वाली माता के यहाँ जन्म लेने के बाद देहरादून को अपनी कर्मस्थली बनाने वाले स्व. पिताश्री ने संघर्ष और आभावों में जीवन व्यतीत करते हुए समाज को वह सब दिया जिसे देने में हम अभी तक समर्थ नही हो पॉय !परिवार की परवाह किये बिना दिवंगत आत्मा ने समाज के शोषित वर्ग और भूमिहीनों के लिये 80 के दशक में आंदोलन चलाया और तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के आह्वाहन पर भूमिहीनों को नजूल भूमि पर हक दिलवाने के लिये मुहिम छेड़ी और बिंदाल नदी के समीप स्थित गुरुराम राय दरबार की सैकड़ों एकड़ जमीन पर भूमिहिनो को बसा दिया आज वह इंद्रा कालोनी (अब न्यू चुखुवाला ) के नाम से जानी जाती है, यही नही यह मुहिम चोरखाला और रिस्पना पुल के समीप चलाकर भूमिहीन आन्दोलन को मजबूती प्रदान की !

अपने और परिवार के भरण पोषण के लिये उन्होंने होटल , कचहरी , फड़ आदि का कार्य भी किया परन्तु आत्म संतोष ना मिला तो अपने विचारों एवं लेखनी को एक सशक्त आवाज देने के लिये पत्रकारिता के क्षेत्र में युगवाणी के माध्यम से कदम रखा और फिर संघर्ष करते हुए अपने साप्ताहिक (अब दैनिक) जनलहर एवं साप्ताहिक दहकते स्वर के माध्यम से समाज में फैली कुरीतियो एवं भर्ष्टाचार के विरुद्ध तीखा प्रहार किया , पत्रकारिता को वे डरपोक और चाटुकारिता करने वाले लोगों के हाथों की कठपुतली बनने के घोर विरोधी थे ! उनके शब्दों में समाचार एक आग्नेय पदार्थ है , असावधानी पूर्वक या दूषित इरादे से इसका प्रयोग विध्वंसकारी हो सकता है! एक संवाददाता का कार्य सम्मानजनक तो है ही – लोक विश्वाश का भी है…..! एक अच्छे पत्रकार को समाचारों और घटनाओं के तह तक जाकर सत्य परोसना चाहिये , इन विचारों के वे प्रबल समर्थक थे !

कर्मचारी एवं अन्य आंदोलन में बढ़ती भागीदारी के कारण उन्हें तत्कालीन जिलाधिकारी से उलझने पर 13 सितंबर 1963 में सरकारी सेवा से अकारण ही निकाल दिया गया और वह सरकारी व ट्रेड यूनियन मजदूरों के हकों की लड़ाई लड़ने लगे , उन्होंने कई कर्मचारी यूनियन (उत्तर प्रदेश राज्य कर्मचारी महासंघ, इरिगेशन कर्मचारी संघ , जिला राज्य कर्मचारी संघ का प्रतिनिधत्व किया , 59 में राज्य कर्मचारियों के लिये कलेक्ट्रेट कॉपरेटिव सोसायटी का गठन किया , 65 में कर्मचारीयो को समान वेतन भत्तों की मांग को लेकर 72 घण्टे का सांकेतिक सत्याग्रह लखनऊ विधान भवन के सामने किया, यही नही अपने परिवार की चिंता किये बिना उन्होंने कर्मचारीयो के हित के लिये 16 दिन की भूख हड़ताल देहरादून में की , इस दौरान उनकी धर्मपत्नी दर्शनी देवी लखेड़ा की प्रसव पीड़ा भी उन्हें आंदोलन से ना रोक पाई !


राजनीति में वे कम्यूनिस्ट विचारधारा के समर्थक थे परंतु राज्य की एक मात्र क्षेत्रीय पार्टी यूकेडी के वह संस्थापक सदस्य थे तथा उत्तर प्रदेश विधानसभा में पहले यूकेडी विद्यायक जसवंत सिंह के साथ मिलकर लखनऊ में पहाड़ की आवाज उठाते थे , आपने देहरादून विधानसभा से चुनाव में भी दस्तक दी , यही नही गावँ के लोगों के प्रति उनकी आत्मीयता का कोई जवाब नही , देहरादून में रहते हुए भी उन्होंने अपने गांव के लिये कुछ योजनाओं को पूरा करवाया, यहाँ पर स्व पिता की समाज के प्रति आहुति में मैं अपनी माता स्व श्रीमती दर्शनी देवी के त्याग का उल्लेख कर अपने पिता को श्रद्धांजलि देना चाहूंगा ,माता दर्शनी देवी ने संकटो के साथ हमारा भरण पोषण किया , उनके चेहरे पर कभी आभावों की सिकन नही रहती थी , कार्य और बच्चों के प्रति जवाबदेही के बावजूद मेंने हमेशा खुशी खुशी कार्य करते हुए उन्हें पाया , बड़ा परिवार किराए का घर और समस्याओं का अंबार होने के बाउजूद हमारी माता ने पिता के समाजसेवा के पथ को कभी रोकने की कोशिश नही की और हमेशा उनका साथ दिया , आज हम जिस मुकाम पर है वह हमारे माता के त्याग का प्रतिफल है !
पिताश्री आपके और माँ के बारे में लिखने के लिये ये जीवन अधूरा है और शब्दों की कतार लगी है , विराम देना भी चाहूं तो ना दे पाऊँगा , जीवन भर आपका ऋणी रहूँगा और ईश्वर से आपकी आत्मा की शांति हेतु दुआ के साथ आपसे आशीष की कामना !

आपका पुत्र !

डी एम लखेड़ा

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