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शिवरात्रि पर शिव अराधना करने वाले शिकारी को मिला मोक्ष।


उत्तराखण्ड लाइव: शिवरात्रि शिव और शक्ति के मिलन का महापर्व है। माना जाता है कि सृष्टि के प्रारंभ में इसी दिन मध्यरात्रि भगवान शंकर का ब्रह्मा से रुद्र रूप में अवतरण हुआ था। यह दिन माता पार्वती और शिव  के विवाह की तिथि के रूप में भी पूजा जाता है। दोस्तों आज हम आपको शिव पुराण में वर्णित महाशिवरात्रि की कथा बताने जा रहे हैं। बहुत समय पहले चित्रभानु नामका एक शिकारी हुआ करता था। जो अपने परिवार का पेट भरने के लिए शिकार करता था। गरीब होने के चलते उसने साहूकार से कर्ज लिया लेकिन उसे चुका नहीं पाया। अपना कर्ज वसूलने के लिए एक दिन साहूकार ने चित्रभानु को कैद कर लिया और उसे दिन भर भूखा प्यासा रखा।

शिकारी ने साहुकार से ऋण चुकाने का वायद किया। साहुकार ने उसे मुक्त कर दिया। सुबह से भूखा प्यासा शिकारी जंगल में शिकार के लिए आ गया। शिकार की खोज में उसे रात हो गई। जंगल में ही उसने रात बिताई। शिकारी एक तालाब के किनारे एक बेल के पेड़ पर चढ़ कर रात बीतने लगा। बेलपत्र के पेड़ नीचे एक शिवलिंग था। उसने आराम करने के लिए कुछ बेलपत्र की सखाएं तोड़ीं तो कुछ पत्तियां नीचे शिवलिंग पर गिर गई। शिकारी भूखा प्यास उसी स्थान पर बैठा रहा। इस प्रकार से शिकारी का व्रत भी हो गया। तभी गर्भिणी हिरणी तालाब पर पानी पीने के लिए आई। शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर हिरणी को मारने की जैसी ही कोशिश की वैसे ही हिरणी बोली मैं गर्भ से हूं। मैं अपने बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊंगी, शिकारी ने तीर वापिस ले लिया। धनुष रखने में कुछ बेल पत्र फिर टूटकर से शिवलिंग पर गिर गए। इस प्रकार उससे अनजाने में ही प्रथम प्रहर का पूजा पूर्ण हुई। कुछ देर बाद एक और हिरणी उधर से निकली शिकारी ने तुरंत ही धनुष पर तीर चढ़ा कर निशाना लगाया। लेकिन तभी हिरणी ने शिकारी से निवेदन किया कि मैं अपने पति को खोज रही हूं उनसे आखरी बार मिल कर तुम्हारे पास आ जाऊंगी। इसी दौरान फिर से उसके हाथ से बेल पत्र टूटकर नीचे शिवलिंग पर जा गिरे, इस प्रकार उसके द्वारा दूसरे प्रहर की पूजा भी हो गई। इसके बाद तीसरी हिरणी दिखाई दी जो अपने बच्चों के साथ उधर से गुजर रही थी। शिकारी ने धनुष उठाया तो हिरणी बोली मैं इन बच्चों को इनके पिता को सौंप कर लौट आऊंगी, मुझे जानें दो। लेकिन अब शिकारी ने ऐसा करने से इनकार कर दिया। उसने बताया कि दो हिरणी को मैं छोड़ चुका हूं। हिरणी ने कहा वचन देती हूं। शिकारी को हिरणी पर दया आ गई और उसे भी जाने दिया। उधर भूखा प्यासा शिकारी अनजाने में बेल की पत्तियां तोड़कर शिवलिंग पर फेंकता रहा। सुबह की पहली किरण निकली तो उसे एक मृग दिखाई दिया। शिकारी ने खुश होकर अपना तीर धनुष पर चढ़ा लिया, तभी मृग ने दुखी होकर शिकारी से कहा यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन हिरणियों और बच्चों को मार डाला है तो मुझे भी मार दो। देर न करो क्योंकि मैं यह दुख सहन नहीं कर सकता हूं। मैं उन हिरणियों का पति हूं। यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी छोड़ दो। मैं अपने परिवार से मिलकर वापस आ जाऊंगा। शिकारी ने उसे भी जाने दिया। सूर्य पूरी तरह से निकल आया था और सुबह हो चुकी थी. शिकारी से अनजाने में ही व्रत, रात्रि-जागरण, सभी प्रहर की पूजा और शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ने की प्रक्रिया पूरी कर ली थी। कुछ देर बाद ही अपने वचन के मुताबिक शिकारी के सामने संपूर्ण मृग परिवार मौजूद था। ताकि शिकारी उनका शिकार कर सके।

किंतु पशुओं की ऐसी सत्यता,सात्विकता एवं सामूहिक प्रेमभावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई। भूखा प्यासा, रात्री जागरण और अनजाने में ही सही लेकिन तीनों पहर शिव अराधना कर उसका कठोर हदय कोमल हो गया । उसके नेत्रों से आंसुओं बहने लगे उसने मृग परिवार को जीवन दान दे दिया। इस पूरी घटन को देवलोक में समस्त देवता देख रहे थे। शिकारी की भक्ति और दयालुता से प्रशन्न होकर स्वयं महाकाल शिव ने उसे तत्काल अपने दिवय दर्शन दिए। अपनी आयु पूरी होने तक शिकारी ने समस्त खुखों का भोग किया ओर मृत्यू के बाद उसे उसे शिवलोक में स्थान दिया। अनजाने मे भी भक्त की पूजा से प्रशन्न होकर उनकी मनोकामना पूरी करे ऐसे देवों के देव महादेव को इसी लिए भोलां कहा गया। जह भोेले नाथ!

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