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साधु की पहचान उसका आचरण और चरित्र है : सन्त रमेश भाई शुक्ला जी


चण्डीगढ़ : सेक्टर 20 स्थित प्राचीन श्री गुग्गा माड़ी हनुमान मन्दिर के सामने रामलीला मैदान में आयोजित श्रीमद् रामचरितमानस (रामायण) रामकथा दिव्य महोत्सव के मौके पर कथा व्यास विश्वविख्यात सन्त रमेश भाई शुक्ला ने प्रवचन के दौरान कहा कि मंदिर वह है जहां देव की स्थापना की जाती है। यहाँ मनुष्य रहता है, वह घर है। हमें भक्ति को जीवन में उतारने का प्रयास करना चाहिए। वेशभूषा को देखकर किसी संत- महात्मा का आकलन नहीं किया जा सकता है। रावण को सन्यासी की वेशभूषा में देखकर सीता माता भी भ्रमित हो गई थीं। हम मिट्टी के घड़े को लेते समय उसकी खूब परख करते हैं। मगर संत और महात्मा से जुड़ने से पूर्व उसके ज्ञान को नहीं देखते हैं। हम भी उसकी वेशभूषा को देखकर संत पुरुष मान लेते हैं। जिसको सब कुछ अर्पित करना है उसे परखना अति आवश्यक है। जब हनुमान जी लंका जाते हैं तो वे विभीषण के घर पहुंचते हैं। उन्होंने देखा कि ब्रह्म मुहूर्त पर विभीषण उठकर श्री राम का जाप करते हैं। हनुमान जी को ऐसे में आभास होता है कि यह सज्जन पुरुष ही है। प्रत्येक व्यक्ति को समय पर सोना चाहिए और समय पर उठना चाहिए। यदि व्यक्ति को यह कला आ जाए तो वह बुद्धिमान और स्वस्थ रहेगा। निशाचर रात को एक्टिव रहता है और दिन में सोता है। प्राचीन काल में लोग सूर्य के प्रकाश से समय का अनुमान लगा लेते थे। ब्रह्म मुहूर्त में उठकर ईश्वर का नाम लेना सज्जन पुरुष की जीवन शैली है। साधु की पहचान उसका आचरण और चरित्र है।

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