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आपके नौनिहालों की सुरक्षा को हैं यह नियम।


बाल अधिकार संरक्षण आयोग द्वारा गठित हैं नियम।
विद्यालयों में चलाया जा रहा जागरूकता अभियान।

ऋषिकेश/ उत्तराखण्ड लाइव : यदि आप एक अभिभावक हैं तो यह खबर आपके लिए है। स्कूल से लेकर आपके आस—पास समाज में आपके नौनिहालों के मानसिक, शारीरिक व शैक्षिक सुरक्षा के लिए सरकार द्वारा कुछ नियम बनाए गए हैं। जिनकी जानकारी होने पर आप अपने बच्चों पर होने वाले मानसिक, शारीरिक अत्याचार, भेदभाव व पड़ताड़ना को रोक सकते हैं।

मंगलवार को देश के विभिन्न विद्यालयों में आयोग द्वारा गठित टीमों द्वारा स्थलीय निरिक्षण कर छात्र सुरक्षा की व्यवस्थाओं का जायजा लिया। इसके अलावा विद्यालय प्रशासन को आयोग द्वारा निर्धारित नियमों को समझाते हुए उनका पालन करने की भी हिदायत दी। इसी कड़ी में निर्मल आश्रम ज्ञान दान अकादमी खैरी कलां ऋषिकेश में बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्षा डॉ गीता खन्ना के नेतृत्व में बाल अधिकार संरक्षण जागरूकता अभियान का आयोजन किया गया। जिसमें क्षेत्र के विभिन्न स्कूलों के प्रधानाचार्यो एवं प्रबंधक शामिल हुए। इस दौरान आयोग द्वारा छात्र हित में गठित नियमों पर चर्चा कर विचारों का आदान प्रदान किया गया। जिसमें सुनिश्चित किया गया कि क्षेत्र के प्रत्येक विद्यालय में यह नियम लागू किए जाएं और समय—समय पर अभिभावकों को भी इस बारे में जानकारी दी जानी चाहिए। साथ ही नौनिहालों को भी छोटी—छोटी ट्रेनिंग के जरिए गुड टच एवं बैठ टच जैसे व्यवहारों की जानकारी दी जानी चाहिए। इस दौरान राज्य में बाल अधिकार संरक्षण के लिए मौजूदा कानूनों के तहत किए जा रहे सुरक्षा उपायों की जानकारी भी दी गई।

बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्षा डॉ गीता खन्ना ने निर्मल आश्रम ज्ञान दान अकैडमी में दी जाने वाली निःशुल्क शिक्षा की प्रशंसा की एवं बच्चों के उज्जवल भविष्य की शुभकामनाएं दी। उन्होंने देशभक्ति एवं बाल अधिकारों के सार्वभौमिकता और अखंडता के सिद्धांतों पर बल दिया उन्होंने वर्तमान समय में शास्त्र के साथ—साथ शस्त्र को भी उपयोगी बताया।
इस दौरान एनजीए प्रधानाचार्य डॉ सुनीता शर्मा ने निर्मल आश्रम संत जोध सिंह महाराज जी, मुख्य अतिथि डॉ गीता खन्ना एवं सभी सम्मानित आगंतुकों का स्वागत और अभिनन्दन किया।

 

इस दौरान उत्तराखंड आयोग के वरिष्ठ सदस्य विनोद कपरूवान,डीएसबी प्रधानाचार्य शिव सहगल, एनडीएस प्रधानाचार्या ललिता कृष्णा स्वामी, डोईवाला से खंड शिक्षा अधिकारी सुमन अग्रवाल, होटल्स अकैडमी प्रधानाचार्या अनीता रतूड़ी, ममता रौथान, विशाल चचरा, विद्यालय के चेयरमैन डॉ एस.न. सूरी, अमृतपाल डंग, प्रिया चावला, निर्मल नेत्र संस्थान से अजय शर्मा, आत्मप्रकाश बाबूजी, संगीत शिक्षक डॉ गुरजेंद्र सिंह, सरबजीत कौर, दीपमाला कोठियाल, दिनेश पैन्यूली, विनोद विज्लवाण,सोहन सिंह कैंतूरा आदि उपस्थित रहे।

आयोग के तहत क्या हैं बच्चों के अधिकार:

बच्चों के अधिकारों में स्वास्थ्य, शिक्षा, पारिवारिक जीवन, खेल और मनोरंजन का अधिकार, पर्याप्त जीवन स्तर और दुर्व्यवहार और नुकसान से सुरक्षा का अधिकार शामिल है। बच्चों के अधिकारों में उनकी विकासात्मक और आयु-उपयुक्त ज़रूरतें शामिल हैं।

गैर-भेदभाव :

बच्चे के लिंग, जाति, जातीयता, राष्ट्रीयता, धर्म, विकलांगता, माता-पिता, यौन अभिविन्यास या अन्य स्थिति की परवाह किए बिना प्रत्येक बच्चे को शिक्षा तक समान पहुंच होनी चाहिए।

बजटीय निर्णयों में बच्चों के हितों का ध्यान रख जाना:

बच्चों से सबंधित राष्ट्रीय बजटीय निर्णय लेते समय, सरकार को बच्चों पर पड़ने वाले उसके नकारात्मक व सकारात्मक दोनों पहलुओं को ध्यान में रखना होगा।

जीवित रहने और विकास का अधिकार:

बुनियादी सेवाओं तक पहुंच सुनिश्चित करने और बच्चों के पूर्ण विकास के लिए अवसर की समानता सुनिश्चित करने के महत्वपूर्ण महत्व को रेखांकित करता है। उदाहरण के लिए, विकलांग बच्चे को अपनी पूरी क्षमता हासिल करने के लिए शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल तक प्रभावी पहुंच होनी चाहिए।

बच्चे के विचारों को सम्मान किया जाना :

उसके अधिकारों से संबंधित सभी मामलों में बच्चे की आवाज़ सुनी जानी चाहिए और उसका सम्मान किया जाना चाहिए। उदाहरण के लिए, जो लोग सत्ता में हैं, उन्हें निर्णय लेने से पहले बच्चों से परामर्श करना चाहिए जो उन्हें प्रभावित करेगा।

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग:

बाल अधिकारों और अन्य संबंधित मामलों की रक्षा के लिए बाल अधिकार संरक्षण आयोग (सीपीसीआर) अधिनियम, 2005 की धारा 3 के तहत देश में गठित एक वैधानिक निकाय है। आयोग को लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण (पॉक्‍सो ) अधिनियम, 2012; किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 और निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार (आरटीई) अधिनियम, 2009 के उचित और प्रभावी कार्यान्वयन की निगरानी करने का भी अधिकार है। आयोग के पास सीपीसीआर अधिनियम, 2005 की धारा 14 और नागरिक प्रक्रिया संहिता, 1908 के तहत मुकदमे की सुनवाई करने वाली दीवानी अदालत की शक्तियां भी हैं।

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